बालसखा - जुलाई 1937 | BalSakha - July 1937
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
64 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थी
सर.
लेखिका, कुमारी लाजवन्ती गोबा, लैय्या
संहामारत ' का. युद्ध छिड़नेवाला था, मयादां बचाना चाहते थे ।. क्यूंकि... जगत्-की
सारे याधा युद्ध-विंचार में संलग्न थे, विशेष मयोदा. स्थापन करने के लिए: तो. उनका
अजुन संलग्न थे, -उनकें मुख्य . सहायक थे. अवतार हुआ है ।” ् की प
दर _ भगवान कृष्ण । दम के “वाह यह भी कोई बात है; तुम भी वानर
.... . प्राताकाल को सुहावना समय है। मनो- हो में इसी नदी पर ही तीरों-द्ारा उल्ल बनाता
हर समीर चल रहा है। पश्नीगण अपने मधुर हूँ यदि शक्ति है. तो तोड़ दिखाओ ?”
कलरब से स्तुति कर रहे हैं। ऐसे. समग्र में... “बहुत अच्छा ! में तेयार हूँ, परन्तु किस
-... झजुन ने बिचारा कि चलो कहीं चलकर घूम शत पर ।
'... ... आयें ।. इसी विचार. से वे बाहर निकले । _ .... -“यदि-पुल तोड़ दिया गया तो में तुम्हारी
कु णएकाएक. उनके ध्यान का एक गजना ने दासता स्वीकार करूंगा या चिता में जल
7... .उचाट कर - दिया | वे कया देखते हैं कि मूंगा, अन्यथा, तुम्हें मेरी दासता स्वीकार ः
< सामने से भीमकाय, स्वशव्ण वानर गरजता करनी पढ़ेगे ” .... .. हा
हुआ चसा आओ. रहा है: देखतें ही देखते वह... पवनसुत ने यह बात स्वीकॉर कर ली. ।
निकट . आ. पहुँचा । इसे _ देखकर अज्लुन ...... वीरवर कोन्तेय ने. तीरों-द्ारा नदी पर
ले तो बड़ा विस्मित हथ्रा परन्तु फिर साहस- . पुल बनाया आर बंजरंगबली ने उसे. तुरन्त
पूचक्रे पूछा आप कौन हैं :? नही तोड़ डाला अब क्यों. था, छुंतीनन्दन . बड़े
7 बॉनर-में हनुमान हूँ... सोच में पढ़े कि अब कया किया जाय । दास
। एनअजुननकया आप वही - हनुमान है जो. होना तो क्षत्रियंखम के विरुद्ध है, इससे चिता
रामंचंद्र जी. के दास ,कहलातें थे। ... ...... . में . जले मंरना- हीं. अच्छा है। ऐसा निश्चण-...
हनुमानजी, हाँ।. ---......: . ...... करके . अजुन लंकड़ियाँ एकत्र करने लगा-।
“तुम्हारे: स्वामी रामचंद्र जी ते घनुधारी -. . “उधर सवान्तयामसी _ भंक्तमयहारी, _ मुरारी
हा --कहलाते-थे, फिर उन्होंने. पत्थरों की अपेक्षा को भी अपने भक्त. की रक्षा का ध्योन या
: . तीरों का पुल क्यों न तैयार कर लिया ।”.... तो वहीं. पर मकट होकर बोले अजुन यह
धर : ८“. बे सबसमर्य थे, तीरों का पुल भी बना. कया हो रहा है? आज तुम्हारा मुखारविंद
“सकते थे; किंतु बानरों की प्रकृति. को देखकर: छुम्हलाया हुआ वंयों हे मगर
:...... उन्होंने ऐसा नहीं किया । क्योंकि चंचल वानर अजुन--दीनॉनाथ | में: कब से आपकी
।: “उसे कट तोड़ डालते ।. वे बांनर-स्वमभाव की - बाट जोह रहा हूँ। आओ आज सिलकर गले
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