यौवन, सौन्दर्य्य और प्रेम | Yauvan, Saundaryya Aur Prem

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Yauvan, Saundaryya Aur Prem by श्रीनाथ सिंह -Shri Nath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुख ओर सम्पत्ति १७ उस समय सुननेवाले मेरी शौक़ीनी की तारीफ कर सकते थे। पर इसका मतलब यही है कि में गरीबी का वास्तविक अथे नहीं समझती थी । जिस मनुष्य का पेट इतना खाली नहीं हुआ कि वह रो दे, उसे पूरी गुरीबी का अनुभव सहज में नहीं होता। इसी प्रकार वह मनुष्य, जो मजदूरी करके अपनी जीविका चलाता है, उस आदमी को ग्रीब नहीं समझता, जिसका कारबार कुछ फैला हुआ होता है. ओर जिसके नौकर-चाकर अधिक होते हैं । जिसे हम बाहर से बहुत अमीर सममते हैं, कभी-कभी वह एक साधारण मजदूर को भी अपने से अच्छा सममता है । क्योंकि वह जानता रहता है कि उसे जो आधिक कष्ट है वह एक साधारण मजदूर को भी नहीं है | अमीरी और गरीबी के प्रश्न पर पूर्ण प्रकाश नहीं पड़ता । इसका कारण यही है कि इस संसार में अधिकांश मनुष्य ऐसे जो धनवान्‌ तो हो गये हैं पर धनी होने के उत्तरदायित्व का उन पर कुछ भी भार नहीं है । कत्तेज्य को न समभनेवाले ऐसे मनुष्य अपने धनी होने का जो सुख अनुभव करते हैं वह बहुत ही दूषित सुख है। उनके खुशी मनाने का ढंग इतना अग्राकृतिक हो गया है कि उसे देखकर हमारे हृदयों में इंषों का भाव उत्पन्न हुए बिना नहीं रह सकता । क्‍ साधारण मनुष्यों का संतोष बड़ा विलक्षण होता है। वे यह अनुभव नहीं कर पाते कि उन्हें गाड़ी तथा मोटर रखने, रेल के अव्वल दर्जे में चलने, ओर अच्छे कपड़े पहनने की जो अपार खुशी है उसका कारण यही है कि उनके पड़ोसी को ये सुविधाएँ




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