बालसखा - जुलाई 1937 | BalSakha - July 1937

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BalSakha - July 1937 by श्रीनाथ सिंह -Shri Nath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थी सर. लेखिका, कुमारी लाजवन्ती गोबा, लैय्या संहामारत ' का. युद्ध छिड़नेवाला था, मयादां बचाना चाहते थे ।. क्यूंकि... जगत्‌-की सारे याधा युद्ध-विंचार में संलग्न थे, विशेष मयोदा. स्थापन करने के लिए: तो. उनका अजुन संलग्न थे, -उनकें मुख्य . सहायक थे. अवतार हुआ है ।” ् की प दर _ भगवान कृष्ण । दम के “वाह यह भी कोई बात है; तुम भी वानर .... . प्राताकाल को सुहावना समय है। मनो- हो में इसी नदी पर ही तीरों-द्ारा उल्ल बनाता हर समीर चल रहा है। पश्नीगण अपने मधुर हूँ यदि शक्ति है. तो तोड़ दिखाओ ?” कलरब से स्तुति कर रहे हैं। ऐसे. समग्र में... “बहुत अच्छा ! में तेयार हूँ, परन्तु किस -... झजुन ने बिचारा कि चलो कहीं चलकर घूम शत पर । '... ... आयें ।. इसी विचार. से वे बाहर निकले । _ .... -“यदि-पुल तोड़ दिया गया तो में तुम्हारी कु णएकाएक. उनके ध्यान का एक गजना ने दासता स्वीकार करूंगा या चिता में जल 7... .उचाट कर - दिया | वे कया देखते हैं कि मूंगा, अन्यथा, तुम्हें मेरी दासता स्वीकार ः < सामने से भीमकाय, स्वशव्ण वानर गरजता करनी पढ़ेगे ” .... .. हा हुआ चसा आओ. रहा है: देखतें ही देखते वह... पवनसुत ने यह बात स्वीकॉर कर ली. । निकट . आ. पहुँचा । इसे _ देखकर अज्लुन ...... वीरवर कोन्तेय ने. तीरों-द्ारा नदी पर ले तो बड़ा विस्मित हथ्रा परन्तु फिर साहस- . पुल बनाया आर बंजरंगबली ने उसे. तुरन्त पूचक्रे पूछा आप कौन हैं :? नही तोड़ डाला अब क्यों. था, छुंतीनन्दन . बड़े 7 बॉनर-में हनुमान हूँ... सोच में पढ़े कि अब कया किया जाय । दास । एनअजुननकया आप वही - हनुमान है जो. होना तो क्षत्रियंखम के विरुद्ध है, इससे चिता रामंचंद्र जी. के दास ,कहलातें थे। ... ...... . में . जले मंरना- हीं. अच्छा है। ऐसा निश्चण-... हनुमानजी, हाँ।. ---......: . ...... करके . अजुन लंकड़ियाँ एकत्र करने लगा-। “तुम्हारे: स्वामी रामचंद्र जी ते घनुधारी -. . “उधर सवान्तयामसी _ भंक्तमयहारी, _ मुरारी हा --कहलाते-थे, फिर उन्होंने. पत्थरों की अपेक्षा को भी अपने भक्त. की रक्षा का ध्योन या : . तीरों का पुल क्यों न तैयार कर लिया ।”.... तो वहीं. पर मकट होकर बोले अजुन यह धर : ८“. बे सबसमर्य थे, तीरों का पुल भी बना. कया हो रहा है? आज तुम्हारा मुखारविंद “सकते थे; किंतु बानरों की प्रकृति. को देखकर: छुम्हलाया हुआ वंयों हे मगर :...... उन्होंने ऐसा नहीं किया । क्योंकि चंचल वानर अजुन--दीनॉनाथ | में: कब से आपकी ।: “उसे कट तोड़ डालते ।. वे बांनर-स्वमभाव की - बाट जोह रहा हूँ। आओ आज सिलकर गले




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