महबंधों भाग - 4 | Mahabandho Bhag - 4

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Mahabandho Bhag - 4  by पं. फूलचन्द्र शास्त्री - Pt. Phoolchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-परिचय मूल प्रकतियोका ओघसे उत्क्ष्ठ व जघन्य स्वामित्व | सूछ प्रकृतियाँ | उत्क्ष्ट स्वामित्य जघन्य स्वासित्व | छुद्द मूरू प्रक़ ० छह कर्मोंका बन्ध करनेवाछा |... अथम ससयमें तज्ञवस्थ हुआ । जघन्य योगसे युक्त ओर जघन्य १३ । उपशामक व क्षपक । | ग न प्रदेशबन्ध कर नेवाला भी कोई सूचस ! निगोद अपर्याप् । के 1 1 प्र | कि ी नलमनन्‍्ययरयस्थययाप से मम सिदाम्यपथवदथपपयदयमददाम्ण द्रानयपजममपिवनदया कक नि न की बना के कान लय जल पथ आधा >कनसव फलना जा मोइनीय कम |... सात क्मोंका बन्धक, उत्कट योगसे युक्त ओर उत्क्ष्ट प्रदेशबन्ध ' करनेवाला कोई सस्यग्दधि व मिध्यादष्टि संज्ञी पश्चेन्द्िय पर्यात हा रन. । वी रेप धवन िशिन पालक नल, अबकी गा आयु कम. |... आठ कमोंडा बन्ध करनेवाला ' न और उत्कष्ट योगवाला कोई सस्यण- न इष्टि व॒सिध्याइष्टि चारों गतिका | संज्ञी पर्याप जीव 1 घुर्लक भचके तृतीय न्रिसागऋि ग्रथस समय विद्यसान, जघन्य योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशवन्थ करनेवाला कोई सूश्म निगोद अप- याँत जीव च्व्क शा ड झा भर का बादाम जी 3८ ८” के पाई बे रथ न... अब सनाट उएटशाबा;,..”... 2.३2. माना अधि,क.द..बालाककट.. छिराइसचरधोला सा मत्टपरतासाविउाजतद बबदटपास्लालस रद ऊ दा इच रचा, फल सा ' अब *बज़लायाबनट का केचवेरग, तबना-2 ह; ह ६... हनन एच ना... उत्तर प्रकृतियोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दशनावरण, सातावेदनीय, यशाःकीर्ति, उच्चगोश्र और पाँच अन्तरायका उपशासक और क्षपक सूचमसाम्पराय जीव; निद्दा, प्रचछा, छह नोकपाय और तीथड्टर प्रकृतिका सम्यग्दष्टि जीव; अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका असंयतसम्यग्दष्टि जीव, श्रत्यास्यानावरणचतुष्कका देशसंयत जीव, संज्वलनचतुष्क और पुरुषवेदका उपशासक भर चपक अनिवृत्तिकरण जीव, असातावेदनीय, मनुष्यायु, देवायु, देवगति, चेक्रियिकशरीर, समचतुरखसंस्थान, वैक्रियिकशरीर आज्ञोपाज, वज्पंभनाराच- संहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका सम्यग्दष्टि और मिथ्याइष्टि संज्ञी पर्या् जीव; आहारकद्लिकका अप्रमचसंयत जीव तथा शेष प्रकृतियोका सिध्यादषि संज्ञी पर्याप्र जीव उत्क़ष्ट अदेशबन्ध करता है । तथा नरकायु, देवायु और नरकग!तेट्विकका असंज्ञी पश्चन्द्रिय जीव; देवगतिचतुष्क और तीथंक्र श्रकृतिका असंयतसम्यग्दष्टि जीव; भाहारकद्रिकका अप्रमत्तसंयत जीव और शेष श्रकृतियोंका तीन मोड़ॉमें से अथम मोड़ेमें स्थित सुचम निगोद॒अपर्या्त जीव जघन्य श्रदेशबन्ध करता है। मात्र तियंज्वायु ओर मजुष्यायुका जघन्य प्रदेशबन्ध आयुबन्धके समय कराना चाहिए । यहाँ यह सामान्यरूपसे स्वामित्वका निर्देश किया है । जो अन्य विशेषताएँ हैं वे मूढसे जान लेनो चाहिए । मात्र जो उत्क्ष्ट योगसे युक्त है, और उत्क़ष्ट प्रदेशबन्घके साथ कमसे कम अकतियोंका बन्थ कर रहा है वदद उत्कृष्ट प्रदेशवन्घका स्वामी होता है । तथा जो जघन्य योगसे युक्त हैं और जघन्य अरदेशबन्धके साथ अधिकसे अधिक श्रकृतियोंका बन्ध कर रहा हैं बह जघन्य प्रदेशबन्घका स्वामी होता हैं । अत्येक प्रकृतिके उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेश- जन्घके समय इतनी विशेषता अवश्य जान लेनी चाहिए । कालप्ररूपणा--इस अनुयोगद्वारमें भोघ व आदेशसे सूरत व उत्तर प्रकृतियोंके जघन्य और उत्कूछ प्रदेशबन्घके काठका विचार किया गया है । उदादरणाथं ज्ञानावरणका उत्झ्ष्ट प्रदेशबन्ध दुशरें गुणस्थानसें होता है और वहाँ उत्कृष्ट योगका जघन्य कारक एक संमंत्र और उत्कृष्ट काल दो समय है, इसलिए इसका




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