महबंधों भाग - 4 | Mahabandho Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
53 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-परिचय
मूल प्रकतियोका ओघसे उत्क्ष्ठ व जघन्य स्वामित्व
| सूछ प्रकृतियाँ | उत्क्ष्ट स्वामित्य जघन्य स्वासित्व
|
छुद्द मूरू प्रक़ ० छह कर्मोंका बन्ध करनेवाछा |... अथम ससयमें तज्ञवस्थ हुआ
। जघन्य योगसे युक्त ओर जघन्य
१३
। उपशामक व क्षपक
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योगसे युक्त ओर उत्क्ष्ट प्रदेशबन्ध '
करनेवाला कोई सस्यग्दधि व
मिध्यादष्टि संज्ञी पश्चेन्द्िय पर्यात
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इष्टि व॒सिध्याइष्टि चारों गतिका
| संज्ञी पर्याप जीव 1
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ग्रथस समय विद्यसान, जघन्य
योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशवन्थ
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उत्तर प्रकृतियोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दशनावरण, सातावेदनीय, यशाःकीर्ति, उच्चगोश्र और
पाँच अन्तरायका उपशासक और क्षपक सूचमसाम्पराय जीव; निद्दा, प्रचछा, छह नोकपाय और तीथड्टर
प्रकृतिका सम्यग्दष्टि जीव; अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका असंयतसम्यग्दष्टि जीव, श्रत्यास्यानावरणचतुष्कका
देशसंयत जीव, संज्वलनचतुष्क और पुरुषवेदका उपशासक भर चपक अनिवृत्तिकरण जीव, असातावेदनीय,
मनुष्यायु, देवायु, देवगति, चेक्रियिकशरीर, समचतुरखसंस्थान, वैक्रियिकशरीर आज्ञोपाज, वज्पंभनाराच-
संहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका सम्यग्दष्टि और मिथ्याइष्टि संज्ञी पर्या् जीव;
आहारकद्लिकका अप्रमचसंयत जीव तथा शेष प्रकृतियोका सिध्यादषि संज्ञी पर्याप्र जीव उत्क़ष्ट अदेशबन्ध
करता है । तथा नरकायु, देवायु और नरकग!तेट्विकका असंज्ञी पश्चन्द्रिय जीव; देवगतिचतुष्क और तीथंक्र
श्रकृतिका असंयतसम्यग्दष्टि जीव; भाहारकद्रिकका अप्रमत्तसंयत जीव और शेष श्रकृतियोंका तीन मोड़ॉमें
से अथम मोड़ेमें स्थित सुचम निगोद॒अपर्या्त जीव जघन्य श्रदेशबन्ध करता है। मात्र तियंज्वायु
ओर मजुष्यायुका जघन्य प्रदेशबन्ध आयुबन्धके समय कराना चाहिए । यहाँ यह सामान्यरूपसे स्वामित्वका
निर्देश किया है । जो अन्य विशेषताएँ हैं वे मूढसे जान लेनो चाहिए । मात्र जो उत्क्ष्ट योगसे युक्त है,
और उत्क़ष्ट प्रदेशबन्घके साथ कमसे कम अकतियोंका बन्थ कर रहा है वदद उत्कृष्ट प्रदेशवन्घका स्वामी
होता है । तथा जो जघन्य योगसे युक्त हैं और जघन्य अरदेशबन्धके साथ अधिकसे अधिक श्रकृतियोंका
बन्ध कर रहा हैं बह जघन्य प्रदेशबन्घका स्वामी होता हैं । अत्येक प्रकृतिके उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेश-
जन्घके समय इतनी विशेषता अवश्य जान लेनी चाहिए ।
कालप्ररूपणा--इस अनुयोगद्वारमें भोघ व आदेशसे सूरत व उत्तर प्रकृतियोंके जघन्य और उत्कूछ
प्रदेशबन्घके काठका विचार किया गया है । उदादरणाथं ज्ञानावरणका उत्झ्ष्ट प्रदेशबन्ध दुशरें गुणस्थानसें
होता है और वहाँ उत्कृष्ट योगका जघन्य कारक एक संमंत्र और उत्कृष्ट काल दो समय है, इसलिए इसका
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