खग्रास | Khagras
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.4 MB
कुल पष्ठ :
341
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ है कि पृथ्वी का झ्पना चुम्बकीय क्षेत्र क्या है वे यह भी नहीं जौनते कि चन्द्रलोक मे चुम्बकीय क्षेत्र है या नहीं । मानव शीघ्र ही भौतिक भू-भौतिक उल्का चन्द्र-सम्पर्क व्योम से सचार व्यवस्था तथा व्योम रचना सम्बन्धी बहुत सी बातो को जान लेगा । इसके बाद उसे नक्षत्रीय व्यापक सचार व्यवस्था तथा जीव विज्ञान सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने मे कुछ समय लगेगा. । चन्द्रमा और अ्रन्य ग्रहो की वैज्ञानिक जाँच भी वह दूसरे दौरान मे करेगा । इसके बाद वह व्योम यात्रा के योग्य होगा तथा चन्द्रलोक भर वहाँ से श्रन्य नक्षत्र लोको मे चालक विहीन यानो मे यात्रा कर पायेगा । परन्तु व्योम-यात्रा का उद्देक्य केवल इतना ही नहीं है। इसके फल स्वरूप मानव जीवन पर भी बडे बडे परिणाम होगे । सम्भवत मानव के सम्पूर्ण विकट रोगों का श्रन्त हो जायगा। वह सुख से रह सकेगा । नासुर थोडी उम्र में बुढापा नपुसकता बाल सफैद होना गजापन श्रादि बीमारियों का भी अन्त हो जायगा । झब यह पता लग गया है कि भुलोक के मगुष्यो को ये बीमारियाँ वाह्म अस्तरिक्ष से विकिरण के कारण उत्पन्न होती है । यह विकिरण ब्रह्माण्ड किरणों के रूप मे पृथ्वी तक पहुँचता है भ्ौर यहाँ पहुंचते पहुँचते इसका तेज कम हो जाता है । भ्रमरीकी वायुसेना ने श्रन्तरिक्ष मे चूहे बिल्ली तथा इसी प्रकार के छोटे-बडे जानवरों को बडे-बडे गुब्बारो में भेजा जो तीन दिन श्रन्तरिक्ष मे रह कर लौट कर पृथ्वी पर श्रा गए । इनके भाइ्चर्यजनक परिणाम हुए । चूहों के काले बाल कुछ दिन बाद सफेद हो गए । सम्भवतया कि ब्रह्माण्ड किरणों ने चूहो के शरीर मे प्रबिप्ठ होकर उनके बालों की जडे खोखली कर दी थी । कुछ जानवरों का शरीर बुरी तरह झुलस गया था कुछ पागल हो गए । कुछ पर कुछ भी श्रसर नहीं पडा । यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्माण्ड किरणों से शरीर के जीव-कोष नष्ट हो जाते है । जीव-कोष नष्ट होने से ही कैसर की बीमारी होती है तथा ब्रह्माण्ड विकिरण से कैन्सर का रोग श्रसाध्य रूप घारण कर लेता है । कटिबन्घ के देशो में कन्सर की बीमारी नहीं होती । इस रोग के रोगी बहुधा समशीतोण्ण कटिंबन्ध तथा उत्तरी प्रदेशों मे पाए जाते है। विधुवत रेखा के
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