अनुत्तर योगी : तीर्थंकर महावीर | Anuttar Yougi Tithrkar Mahavir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८
देवी आम्रपाली का द्वार स्वागत-गून्य ही रह गया। वहाँ श्रीभगवान् की
आरती नहीं उतारी जा सकी । अगले ही क्षण श्रीभगवानु चल पड़े। काल
गतिमान हो गया। इतिहास वृत्तायमान हो गया। शोभान्यात्रा श्रीभगवान्
का अनुसरण करन लगी । नगर के तमाम मण्डलो, चौराहों, नरिको, पण्यों,
अन्तरायणों को घन्य करते हुए प्रभु, अविकल्प ज्रीडा भाव से वैशाली की
परित्रमा करते नले गये।
अपराह्न बेला से श्रीभगवान् वैशाली के विश्व-विश्वत सथागार के सामने
से गुज्रें। असुर्थपण्या सुन्दारियों की उन्मकत देहों से निर्मित द्वार मे प्रभु
अचानक रक गये । गान्धिरी रोहिणी मामी ने जाने कितने भगों मे बलखाते,
नम्रीभत होते हाए माणिक्य वे सीराजन में उजलती जोतों से प्रभु की आरती
उतारी । उसकी आखि आसुओ में डूब चली । श्रीभगवान् के अमिताभ मुख-
मण्ठल को हजार जाँखों से देख कर भी वह न देख पायी ।
देवी रोहिणी ने कंम्पित कण्ठ से अनुनय किया
'बैशाली के सूर्यपु्र तीर्थंकर महावीर, फिर एक बार वैशानी के सथागार
का पावन करे । यहाँ की राजसभा प्रभ की धर्मसभा हो जाये । प्रभु बेजाली
के जनगण को यहाँ सम्बोधन करे 1'
सुन कर वैशाली के आटकूलक राजन्यों को काठ मार गया । उन्ह लगा
कि वैशाली के महानायक वी अद्धागना स्वयम्ू ही वैशाली के सत्यानाश को
न्योता दे रही ह। अचानक मुनार्ट पड़ा
'महावीर मे सुरज-युद्ध की साक्षी हो कर भी राहिगी इतनी छोटी लात
चंसे बोल गयी जानो गान्धारी, दिगम्बर महावीर अब दीवारों में नहीं
बोलता वह दिगनतों के जारपार बोलता है । तथास्तु देवी ' तुम्हारी उच्छा पुरी
होगी । णीघ्न ही बैगाली मुझे सुनेगी । मै उसके जन-जन की आत्मा से लोलंगा !
अचानक जय तफ व्याप्त निस्तब्धता टेट गई । असख्य ऑर अविराम
जयकारों की ध्वनियों से वैशाली के खुब्ण, रजत आर ताम्र बलशा मे मण्दल
चत्राकार घमते दिखायी पड़ने लगे ।
और भगवान् नाना वॉजिन्न ध्वनियो से घोपायमान, सुन्दरियों की कमानों
मे आेण्टित बेशाली के पूब ट्वार को पार कर, 'सहावन उद्यान' की ओर
गतिमान दिखायी पढ़ें ।
मर तभी हटातू वैशाली के आकाश दव-बिमानों की सर्णि-्रभाओं से
सौधघिया उठे । और देव-दुन्दुभियों तथा शखतादों से वैशाली के गर्भ दोलायमान
होने लगे ।
कि
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