श्री बल्लभ बिलास भाग - २ | Sri Ballabh Bilas Bhag - 2

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Sri Ballabh Bilas Bhag - 2  by ब्रजजीवन दास - Brajjivan Dasब्रजभूखन दासात्मज - Brajbhukhan Dasatmaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१८...) सी होत हैं याद्ी में मख्यता है *ज्ञात पांत पूछें नहिं कोय हरि को भजे सो इरि को होय” । और शास्त्रन सें सब प्रसिद है जो बालमीक रीषीश्वर स्वपच जात के रहे ब्यासोम त्सोदरीय व्यास जौ मज्लादहिन के पेट ते उत्पन्न भये अगस्तो कंभ संभवा अगस्त जौ कूंभ ते भये वेश्या पुचो वशिष्टो वशिष् जौ बेश्या ते भये पांडव वोजार जाता पांडव लोग जारतें परन्तु थे लोग भगवद भक्ति के प्रभावते भगवदंस और क्रषीन में सिरोसणी भये और हरनावस और हिरण कश्यप कश्यप कऋपी के पुत्र और रावनादिक पुलस्त कऋषी के पुत्र दत्यादिक दुष्टाचरण ते असुर कहाये जो अधापि प्रातःकाल कोइ इनको नाम नहीं लेत हैं ताते क्यो है ॥ और भत्तामाल में सब की कथा प्रसिद ही है जाने जात को अभिमान करके मक्तन को अनादर कियो सो लघुता को पाये और लक्तित भये तहां तलसौ दासझ् कच्मो जो “जातन के अभिसान ते बूढ़े सकल कलौन” और सृत पौराणिक . ज्ञात में ऋषौन ते नौचे रे परन्तु नौमशारण्य में अठासौ इजार ऋषौश्वर सूत जौ को ऊंचो आसन दे भगवत कथा उनने शवण किये और जाति अभिसान राखे ते अन्त: करण में दासत्व भाव नहीं आवे सो इस भगवत प्राप्ति में बाघक ' हैं ताते जात को अभिमान और अहंकार छोड़ भगवत चर- नार बिन्द भक्ति के सौभाग्य को मध राखेह्ी सब कल्याण है ॥ लव वतापतातपलर्वायित,




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