प्राचीन राजस्थानी काव्य | Prachin Rajasthani Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भरत-वाहुबली --शालिभद्र सूरि देशि सुवदेग सु वबुरतदं, सभकछि वाहूबल्ि । 'राउत बोध तुहद तुल्लइ, ईणिइ अछइ रवि-तदि ॥७६॥। जा व... बघव. भरह नारिदो, जसु भुइ॒ कपइ सर्गि सुरिंदो। जीणइ जीता भरहू छ.. पड, म्लेच्छ मनाव्या आण बप्रह ८० भेडि भडतत न भूयवक्ति भाजइ, मडयडतु गढ़ि गोढिम गाजइ। सहस बतीस. मठडाधा. राय, सूप बघव सवि. सेवइ पाय ॥८३१॥। धऊद रयण धरि नव निहाण, सय ने गय पड़ जसु बेवाण। हुप. हवा. पाटह अभिषेवी, तूय नवि आआवीय बवण विवेको ॥८२॥ विण बधव सबि. सपय ऊणी, जिम विष लदथ रसोइ अयूणी । तुम्हू दंभण. उतर्थिव. राउ, नित नित वाट जोइ वुत भाउ ॥८३॥ थदर सहोयर अनइ दे. बोर, देव ज श्रामइ साहस धीर। एक गोह.. अनइ.. पायरीउ, भररेंर नई सतद पर्दरोउ परत




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