अनुसंधान की प्रक्रिया | Anusandhan Ki Prakriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ ग्रनुसघान की प्रक्रिया किन्ही निदिचित सीमाशओ में नही बाँधा जा सकता । बात यह है कि भाषा श्ौर साहित्य या वाइमय एक श्रविच्छिन्त श्रौर अ्विभाज्य धारा है जो कभी मन्द कभी तीव्र गति से श्रव्याहत रूप में प्रवहमान है । देश श्रौर काल की सीमाएँ उसके लिए श्रस्वीकाय है । इसलिए किसी भी भाषा श्रथवा साहित्य का अझनुसन्धान-काय तब तक शभ्रपूण ही माना जायेगा जब तक उसमे सावदेशिक और सावकालिक रूप से विचार नटद्दी किया जायगा--चाहे वह विचार श्रानुषगिक ही क्यो न हो । हिन्दी साहित्य के भक्ति-काव्य का विद्लेषण भारतवष की अन्य भाषाश्रो के भक्ति-काव्य के विचार के बिना अपूण ही माना जायगा । साथ ही साथ विद्व के समकालीन भक्ति-काव्य पर विचार भी उसके लिए श्रवदयक होगा । पर इतनी व्यापकता होते हुए भी भ्रनुसन्धान के काय मे उच्चकोटि की वेज्ञानिकता श्रौर सीमाबद्धता श्रपेक्षित है । इसीलिए इस विरोधाभास के कारण अचुसन्धान का काय बडा दुरूह, श्रमसाध्य और दुस्तर है । यहाँ हम केवल हिन्दी श्रनुसन्धान की प्रगति पर ही विचार कर रहे है--उसका मुल्याकन या प्रविधि- निर्देश झाग्रे के भाषणों मे विस्तार से होगा। मैं इस भाषण को विशेष रूप से प्रगति तक ही सीमित रखूगा । हिन्दी के प्राचीन श्रौर मध्यकालीन साहित्य को लेकर जो श्रनुसन्धान काय हुआ है उसमे कोई व्यवस्था नही है । इस भ्रव्यवस्था का झ्रथ यह नहीं है कि वहू कार्य निम्नकोटि का है । इसका श्रथ केवल इतना ही है कि उस सम्पूण कार्य के पीछे कोई सुसबद्ध योजना नहीं है, इसीलिए उसमे कुछ पिष्टपेषण, कुछ विश्वखलता श्रौर कुछ असम्बद्धता प्रतीत होती है । हमारे विश्वविद्यालयों की शिक्षा-प्रणाली तथा उनका शासन संगठन ही इस अ्रव्यवस्था के सुल कारण हैं। भारतीय विद्वाच्‌ मे मनीषा की प्रखरता श्रौर प्रतिभा का चमत्कार विद्यमान है पर उनके उपयोग के अवसर नहीं हैं। श्रब समय श्रा गया है जब अ्न्तर्‌- विष्वविद्यालयीय स्तर पर हमे इन बातो पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । का प्रारभ हिन्दी मे अनुसन्धान का काये गत ४० वर्षों से हो रहा है श्रौर भ्रब तक लगभग २७५ प्रबन्ध भारतीय तथा भारतेतर विश्वविद्यालयों मे शोध- उपाधियों के लिए स्वीकृत किए जा हैं लगभग ४४५० शोध-विषयों पर कार्य कराया जा रहा है । भाषा, साहित्य, सस्कृति श्रौर ग्रन्थ-सपादन सम्बन्धी भ्नेक विषयों पर हिन्दी श्रनुसन्धान का कार्य भारत के लगभग बीस विदवविद्यालयों मे हो रहा है। इनके श्रतिरिक्त झ्मेरिका, इगलैड, फ्रान्स,




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