जीवन निर्वाह | Jeevan Nirvaah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ मसुष्यका सल्ुष्यत्व ० चर ििडिडिममन सुन उप जाएिका पफशजीवनसे उन्नति करते करते मनुष्यत्व प्राप्त करनेका पूर्वोक्त वर्णन मालूम हो जानेपर यह बात सहज ही समझी जा सकती है कि मनुष्योंको अपना मनुष्यत्व कायम रखने और आगेको उसे अधिकाधिक उन्नत करनेके लिए कौन कौनसे कत्तेव्य पाठन करने चाहिए । क्योंकि जिन सब बातोंकी बदौलत मनुष्यकों अपने जीवन-निर्वौहकी अनेक उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होने लगीं तथा जिनकी बदौलत उसका जीवन पशजीवनसे सर्वथा भिन्न होकर अत्यन्त सुखमय तथा परम श्रेष्ठ बन गया उन सब बातोंकी रक्षा करना और उनको उन्नत बनाना मनुष्य-जीवनका मुख्य कत्तेव्य हँ-और उनसे ही उसके मनुष्यव्वकी रक्षा हो सकती है | उक्त बातोंको हम तीन श्रेणियोंमें विभक्त करते हें- १ वबिचारदाक्ति-- जिसके द्वारा मनुष्य अपनी उन्नति और सखशान्तिके बढानेवाले नवीन उपायोंको खोजता और प्राचीन असविघाजनक तरीकोंकों छोड़ता जाता है । २ वचनशक्ति --जिसके द्वारा बालकों तथा नवयुवकोंकों अपनेसे बडें तथा अनुभवी पुरुषोंकी जानी बूझी हुई बातें मादूम होती रहती हैं और आगे चलकर जब ये ही बाठक तथा नवयुवक सयाने होते हैं या पिदृपदको पाते हैं तब वे अपने पूर्वजोंकी सुनी हुईं और अपनी द्वि तथा अनुभवसे प्राप्त की हुईं बातोंको अपने बच्चोंको सनाते या सिखाते हैं । इस प्रकार इस बातचीत करनेकी शक्तिकी बदौलत नुष्य उन सब लोगोंकी खोजी हुईं बातोंको जानता रहता हे कि जो उससे सैकडों-हजारों पीढी पहले उत्पन्न हुए थे । नवीन लोग प्राचीन लोगोंके अनुभवसे जानी हुईं बातोंमें अपनी बुद्धिको लडाकर कुछ




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