शरत् के नारी पात्र | Sharat Ke Nari Patra

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Sharat Ke Nari Patra by रामस्वरूप चतुर्वेदी - Ramswsaroop Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बढ़ी बहिन [ बड़ दिदि | के शरत्‌की “बडी बहिन' का प्रकागन वँंगला-साहित्यमे एक घटना है । जिस कथावस्तुको लेकर यह उपन्यास चलता है, उसका तत्कालीन बग- समाजने तीन्न विरोध किया, और उसके अज्ञात लेखकको बडे ही आडे हाथो लिया गया । इस तीखे विरोधका एकमात्र कारण यट था कि “बडी बहिन में एक विधवा नारीके हृदयमे फिरसे रागात्मिका वृत्तिका प्रादुर्भाव दिखाया गया है । परतु महानू कलाकार तो सदैव ही अपने समयके सबसे बडे विद्योही हुआ करते हे । गरत्‌ने अपनी आँखों देखा था कि केवल मात्र एक दवेत साडीके पहिना देनेंसे ही एक विधवा नारीकी वासना एव उसके हृदयकी रगीनियाँ शात नही हो जाती । वे सूक्ष्म मानव-जीवनके अत्द्वष्टा थे । उन्होने नारीके अत करणमे पैठकर देख लिया था कि वहाँ सदैव ही असीम स्नेहका सतत स्रोत ब्र्तंमान है, जो. सरस्वतीकी भाँति गुप्त रढनेपर भी-यथावसर प्रकट हुए बिना नहीं रहता । ' और फिर 'वडी बहिन'का कथानक ऐसा विद्वेप आघात पहुँचानेवालम भी नहीं है । एक धनी पिताका एकमात्र पुत्र सुरेन्द्र अपने घरसे रूठकर कलकततें चला जाता है । वहू शिशुके समान सरल एवं निरीह तथा परले सिरेका .लापरवाह है । वहाँ वह एक जमीदारकी छोटी पुत्रीके शिक्षकके रूपसे रहने छगता है । जमीदारकी बडी लडकी माधवी (बडी वहिन ) ; जो वाल-विधवा है, घरका सारा प्रबंध करती है । उसकी मंमताका एक भाग सुरेन्द्रको भी मिलता है । एक दिन जब वहूं अचानक ही जमीदार- 'का घर छोडकर चल देता है तो उसे तथा माघवी दोनोको ही ज्ञात होता




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