हिंदी भाषा और साहित्य का विकास | Hindi Bhasha Aur Sahitya Ka Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.38 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२. हिन्दी भाषा का विकास
ससार में अनेक भाषाएँ हैं । उनमें से कुछ तो ऐसीं हैं जिनमे
रचना श्रौर श्रर्थ-तच्त्त की दृष्टि से साम्य है, परन्ठ शेष ऐसी हैं जो एक-
क दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं । भाषा-विज्ञान के आचायों ने
ससार दी भाषाओं उन सब का वर्गीकरण दो दृष्टियों से किया है--एक तो
हिन्दी का स्थान _नकी रचना श्रौर गठन की दृष्टि से श्र दूसरे उनकी
उत्पत्ति अथवा परिवार की दृष्टि से । पहल प्रकार के विभाजन को आकृति
मुलक वर्गीकरण श्र दूसरे प्रकार के विभाजन को पारिवारिक वर्गीकरण
कहते हैं । झाकृति सूलक वर्गीकरण के अनुसार भाषाओं के इतिहास श्रादि
की ओर ध्यान न देकर उनके शब्दों के रूप झ्रादि की दृष्टि से भाषाश्रों
का विभाजन किया जाता है । भाषाओं के इस प्रकार के वर्गीकरण के पक्ष
में यदद तक प्रस्तुत किया जाता है कि मनुष्य ने झादि काल में वाक्यों में दी
बोलना सीखा था । इस दृष्टि से भाषाओं के तीन वर्ग किए जाते है:
(१) अयोगात्मक भाषाएँ, (२) योगात्मक भाषाएँ श्र (३) विभक्तियुक्त
भाषाएँ: । आयोगात्सक भाषाएँ वे भाषाएँ हैं जिनमें प्रत्येक शब्द स्वतंत्र रीति
से प्रथक-प्रथक प्रयुक्त होते हैं । इसलिए उन्हें एकाच्रात्मक भाषाएँ: कहते
हैं। ऐसी भाषाओं में प्रत्यय नहीं होते । लद्दजा उनका झावश्यक अंग होता
है श्रौर इसी से शब्दो के अर्थ का निर्णय होता है । चीन, तिब्बत, वर्मा,
श्याम आदि देशों की भाषाएँ: इसी प्रकार की हैं । योगात्मक सापाएँ उन
भाषाओं को कहते हैं जिनके शब्द एक से अधिक झंशों के मेल से बनते
हैं। इन झंशों में से जिस झंश का झ्रथ॑ स्थिर रहता है उसे श्रक्कति कहते
हैं । टर्की, हंगरी, फिनलैरड श्रादि देशों की भाषाएँ इसी प्रकार की हैं।
विभक्तियुक्त भापाएँ वे भाषाएँ: हैं जिनके शब्द प्रकृति-प्रत्यय के योग से बनते
हैं । संस्कृति, फ़ारसी झादि इसी वर्ग की भाषाएँ हैं । भाषाओं के इस प्रकार
के वर्गीकरण के अनुसार उनके विकास का पथ झयोगात्मक--योगात्मक---
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