कसाय पाहुड़ | Kasay Pahud
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
55 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ जरशकतालाहित कावाशइत
सतरह भनुवोगोंके द्वारा कि गया है, जिनमेंते काल अनुयोगका सामान्यते कथन यतिष्षम भाचायने स्वयं
किया है और शेष अनुयोगद्वारोंका कथन उच्चारणा दृच्तिके आधारसे किया गया है ।
पदनिक्षेप
पहले मोदनीयके २८, २७ आदि विभक्तिस्थान बतलाये हैं । उनमेंसे भमुक स्थानसे अमुक स्थान
की प्राप्ति होने पर वह हानिरूप है या बृद्धिरूप है, इत्यादि बातोंका विचार पद निशक्षेप नामके विभागमें
किया है । जैसे एक जीव अट्टाईस प्रकृतियोंकी सत्ता वाला है । उसने सम्यक््त्व प्रकृतिकी उद्देखना करके
सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्ताको प्राप्त किया तो यह जघन्य हानि कही जायेगी । तथा एक जीव इछ्कीस प्रकृतियों
की सत्ता वाला है । उसने क्षपकश्रेणी पर चट कर आठ कष्नायोंका क्षय करके तेरह प्रकृतिक सत्त्व स्थानकों
प्राप्त किया तो यह उत्कृष्ट हानि. कही जायेगी । इसी तरह मोहनीयकी सत्ता वाले किसी जीवने उपशम
सम्यक्त्वको प्रात करके अट्वाईस प्रकृतियोंकी सत्ताकों प्रास किया तो यह जघन्य बृद्धि कदलायेगी । और
चौंवीस विभक्ति स्थानवाले किसी जीवने मिथ्यात्वमें जाकर अट्वाईस प्रकृतियॉकी सत्ता प्राप्त की तो यह उत्कृष्ट
बृद्धि कदलायेगी । इत्यादि बातोंका विचार इस अधिकारमें किया गया है।
इस अधिकारके प्रारम्भमें केवल एक चूणिसूत्र लिखकर आचार्य यतिद्रषभने प्रकृति विभक्तिका
समास कर दिया है । हां, उच्चारणाचायने समुत्कीतना, स्वामित्व और अल्पन्हृत्व इस तीन अनुयागद्वारोंसे
पदनिक्षेपका वर्णन किया है । उसीको ठेकर स्वामी वीरसेनने कथन किया है ।
बृद्धिविभक्ति
मोहनीयकं उक्त सत्त्य स्थानोंमेंसे एक स्थानसे दूसरे स्थानका प्रात होते समय जो द्ानि, इद्धि
या अवस्थान होता है वद्द उसके संख्यातवे भाग है या संख्यातगुणा है इत्यादि विचार वृद्धिविभक्तिमें किया
है। इस अधिकारका कथन तेरह अनुयागद्वारोंसे किया गया है । व्ृद्धिविभक्तिके पूर्ण होनेके साथहदी प्रकृति
विभक्ति समास दोजाती है
अनुयोगोंकी उपयोगिता
तत्त्वाथ सूत्रके पहले अध्यायमें वस्तुतस्वको जाननेके उपाय बतलाते हुए. कहा है कि यों तो प्रमाण
और नयसे वस्वुतत्वका ज्ञान होता हे, किन्दु उसमें सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव भौर
अव्पबहुत्व भी उपयोगी हैं, इनके द्वारा वस्तुका पूऋ्र साड़ापांग शान हो जाता है । जैसे, यदि हमें मोटरें
खरीदना है तो उनके बारेमें हम निम्न बातें जानना चाहेंगे--आजकल बाजारमें मोटर हैं या नहीं ? क्तिनीं
हैं? कहां कहां हैं ? हमेशा कहांसे मिल सकती हैं ? कब तक मिल सकती हैं ? यदि बिक चुकें तो फिर
कितने दिन बाद मिल सकेंगी £ किस किस रूप रंगकी हैं ? किस किस्मकी ज्यादा हैं और किस किस्मकी
कम £ इन बातोंसे हमें मोटरोंके विषयमें जैसे पूरी जानकारी हो जाती है वैसे ही जैनसिद्धान्तमें जीव आदि
तत्वोंकी जानकारी भी उक्त अनुयोगद्वारोंसे कराई गइ है । चूकि प्रकृत कषायप्राभरत ग्रन्थका प्रतिपाद्य
विषय मोहनीय कमका सत्त्व है अतः इसमें उसका कथन विविध अनुयोगोंके द्वारा किया गया है । उनसे
उसका सड़ोपांग परिज्ञान हो जाता हैं और कोई भी बात छूट नहीं जाती ।
किन्तु आजके समयमें यह प्रश्न होता है कि एक मोहनीय कमंके इतने सांगोपाज् शानकी क्या
आवश्यकता है ? मनुष्य जीवनमें उसका उपयोग क्या दे ?
जेन सिद्धन्तका नाम जानने वाले भी इतना तो जानते ही हैं कि जैन धर्म आत्मधर्म है । वह प्रत्येक
आत्माके अम्युस्थानका माग॑ बतलाता है । और आह्माके अभ्युत्यानका सबसे बढ़ा बाधक मोहनीय कर्म है ।
अतः उस कमंकी कौन कौन प्रकृति कब कहांपर कैसी हारूतमें रहती है, भादि बातोंको जानना आवश्यक है ।
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