ह्रदय की परख | Hirday Ki Parakh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
453 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हृदय की परख
पहला परिच्देद
रात बढ़ी श्ँपे री थी । ११ बज चुरे थे, बादल गरज रहे
थे, बिजली कढ़क रही थी, और मूसलधार वर्षा दो रही
थी । हाथों दाथ नहीं सूमता था, चारो ओर सन्नाटा छा रहा
था । लोकनायर्सिंद ्पने खेत के पासताले भोपड़े में चुप नाप
बैठा हुआ गुड़गुड़ी पी रहा था। अचानक उसे घोड़े की
ठाप के शब्द सुनाई दिए । पास ही 'झाले में मिट्री का एक
दिया टिमटिमा रहा था ! उसको बत्ती एक तिनके से उसका-
कर, उसने 'झाँखों पर हाथ रखकर अंधेरे में देख्ग कि ऐसे
बुरे वक़्त में कोन घर से बाहर निकला है। थोड़ो देर ब्राद
किसी ने उसका द्वार खटखटाया । लोकनाथ ने भह श्ाकर
देखा, एक सबार पानी में तर-बतर खड़ी है, शोर उसके हाथों
है एक नवजात बालक है । बातक दो ही चार दिन का होगा ।
सबार ने बूढ़े से कद्दा--'महाशय ! कया श्राप कृपा करके मेरी
कुछ सद्दायता करेंगे ? 'आाप देखते हैं; में बिलकुल भीग गया--
रात भी बहुत बीत गई है; कुछ ऐसी ही घटनाएँ हो गईं
जिससे इस बालक को ऐसे कुपबसर पर बाहर ले झाना
पढ़ा । क्या झापसे कुछ झाशा कहूँ ?”
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