भोपाल के समकालीन चित्रकारों में लोक कला का प्रभाव | Bhopal Ke Samakalin Chitrakaron Men Lok Kala Ka Prabhav

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Bhopal Ke Samakalin Chitrakaron Men Lok Kala Ka Prabhav by स्नेहलता - Snehlata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोपाल के समकालीन चित्रकारों में लोककला का प्रभाव || मिलाकर भी.. प्रयोग किया गया । कहीं कहीं इन चित्रकारों ने पेंन्सिल से भी चित्र | बनाकर काली स्याही से भी सम्पूर्ण चित्र को बनाया | इस शैली के अधिकतर | चित्र छोटे आकार में बने इस पश्चमी प्रभाव से बम्बई मद्रास कलकत्ता लाहौर | में कला शिक्षा के लिये विद्यालय खोले गये और विद्यार्थियों को पाश्चात्य ढ़ंग से | कला की शिक्षा दी जाने लगी और यर्थाथ शैली का पर्दापण हुआ | 19वीं शदी के अन्त तक अंग्रेजों ने पाश्चात्य चित्रकला को भारत में | फैलाने का पूर्ण प्रयास किया | जिसमें वह सफल भी हुये शताब्दी के अन्त तक पूर्वी भारत के कला जगत में दो विशिष्ट कला रूप प्रकट हुये । अधिसंख्य में || प्रतिभाशाली कलाकारों ने प्रचलित तकनीक अपना ली | वे अपनी चित्रात्मक आकांक्षा की दृष्टि के लिये व अपनी जीविका के लिये भारतीय जीवन और || परिदृश्य को यूरोपीय शैली में चित्रित करने लगे | तथा अन्य कुछ ने बहुत करके ग्रामीण एवं अति सम्पन्न वर्गों के आनन्द के लिये भारतीय संस्कृति एवं | लोककला के चिर परिचित चित्र बनाना स्वीकार किया। जिन्हे बाजार में पेन्टिंग | | कहा गया । विदेशी शासन की चकाचौध और नवीन संघर्षों ने हमारी हर चीज को बेगाना सा बना दिया। भारत के कलाकारों ने अंग्रेजों की शैली, तकनीक सभी कुछ सीखा और | उनकी शैली में चित्राँकन भी किया । किन्तु अपनी पारम्परिक कला को भी बनाये रखा है | जिससे धीरे - धीरे नई शैली का विकास हुआ। जिसे वर्तमान में समकालीन कला कहा गया । आधुनिक कला के विविध कलाकारों ने इस प्रक्रिया |. को गति दी | और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे है 19वीं सदी के प्रख्यात दक्षिण भारतीय चित्रकार राजा रवि वर्मा का महत्व सिफ॑ इसलिये नहीं है। कि उन्होने भारतीय सांस्कृतिक विषयों को अपने चित्रों का विषय बनाना बल्कि इस कारण भी है कि उनके चित्रों में यूरोपीय कला जगत की तदयुगीन बारीकियां भी दिखाई देती थी और यह पारम्परिकता और आधुनिकता को जोड़ने का पहला | 2007 बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी चित्रकला विषय में शोध उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध (उ)




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