श्रीलंका | Shrilanka

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Shrilanka by स्नेहलता - Snehlata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रौर दानव हीं रहते थे । पास-पड़ोस के व्यापारी यहाँ श्राकर उनसे श्रादान-प्रदान श्रौर परिवतंन द्वारा व्यापार किया करते थे । यहाँ के निवासी राक्षस श्रौर दानव इन व्यापारियों के सामने नहीं निकलते थे, वरन्‌ श्रपनी चीजों के दाम लगाकर प्रोर खुले में रखकर छुप जाते थे । विदेशी व्यापारी तब श्रपनी पसन्द की चीजें ले जाते थे श्रौर बदले में श्रपने साथ लाई हुई चीजें छोड़ जाते थे । लंका के पुराने इतिहास के बारे में भारतीय पौराणिक साहित्य में, विशेषतः रामायण में, बहुत कुछ लिखा मिलता है। रोम श्रौर यूनान के इतिहासकारों की कृतियों में भी इस द्वीप का वर्णन . है लेकिन पौराणिक गाथाग्रों और किंवदंतियों में से वास्तविक इतिहास को निकाल पाना श्रासान नहीं है । इस द्वीप का इतिहास बाद मेंबोद्धो द्वारा महावंश, राजावलीय, दीपवंश, चूलवंश श्रादि नाम के ग्रंथों में लिपिबद्ध किया गया । इस प्रकार लंका का गत २४०० वर्षों का लिखित इतिहास प्राप्त हो जाता है । यह इतिहास भगवान्‌ बुद्ध के जन्म के श्रास-पास के समय से शुरू होता है जब कि ईसा से ५४३ वर्ष पूर्व उत्तरी भारत के एक राजकुमार विजय झ्रपने ७०० योद्धा साथियों सहित लंका के पश्चिमी तट पर पृत्तलम के पास उतरे । राजकृमार विजय ने यक्षों को पराजित किया श्रोौर श्रपनी राजधानी तमन्ना नुवारा में बनायी । उनके साथी सैनिक श्रनुराधापुर, उपतिस्स श्रौर विजितपुर में जाकर बसे । राजकुमार विजय की श्रपनी कहानी भी लोककथाग्रों के ग्रनुसार बहुत श्राश्चर्यजनक है । कलिंग देश की राजकुमारी का : १२:




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