कुणाल | Kunal

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Kunal by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुणाल ०2१०, 2 पहला झड्झू पहला दृश्य स्थान--पाटलिपुन्न में श्रशोाकाराम चिद्दार समय--सार्यकाल के पूर्व [ कुछ मिक्लुओं का वार्वालाप ] पहला मिज्लु-इसकी ईंष्या की कुछ सीमा नहीं, दप का कुछ अन्त नहीं । शेफ है इस महारानी पर !. यह मौयकुल के यश की उज्ज्वल चादर पर कलक्क लगायेगी । दूसरा मिक्ठु--क्यों ्यानन्दगुप्त ! कुछ और नह घटना हुई कया ? भानन्दगुप्त--सा ता प्रतिदिन होती रहती है। झाज सम्राट ने वोधि- बृत्त के लिए मूल्य उपदार भेजा ।. तत्काल तिष्यरक्िता के नेत्र तप्त शाखित से रक्त हो गये । उसके सुख से झस्वीकृति की झलक अकट की । परन्तु सम्राट से वह कुछ कह न सकी । दूसरा मिछु--इस महारानी का चरित्र सहारानी पद के अतिक्ूल है। वोधिवृक्ष से ईप्या ! दोधिवृत्त से दप ! वह वोधि-




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