हिंदी जैन साहित्य परिशीलन -भाग दूसरा | Hindi-jain-sahitya-parisheelan Vol-2; (1953)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घ्तसाव काव्यघारा और उसकी विभिन्न प्रदूत्तियाँ २१
भह्दों झकंकार विहाय रत के,
अनूप रत्नब्रप्र भूषितांग हो।
तने हुए अम्बर अंग-भंग से,
दिगस्वराकार विकार झून्य हो ॥
समीप ही जो परदेव दृष्य है,
नितास्त इवेताम्बर सा बना रहा।
अग्रंथ नि्दन्दू॒ महान संयसी,
बने हुए दो निजधर्म के ध्वजी ॥
वस्तु-वर्णनमे महाकाव्यकी इृष्टिसि घटना-विधान, दृश्ययोजना और
परिस्थिति-निमाण--ये तीन तत्व आते है । वद्धमानकी कथावस्तुमे प्रायः
हद्य-योजना तत्वका अभाव है । घटनाविघान और परिस्थिति-निर्माण
इन दोनों तत्वोकी वहुकता है । कविने इस प्रकारका कोई दृश्य आयो-
लित नहीं किया है जो. मानवकी रागात्मिका इत्तन्त्रीकों सहज रूपमे
झंकत कर सके । घटनाओंका क्रम मन्थर गतिसे बढ़ता हुआ आगे
चलता है जिससे पाठकके सामने घटनाका चित्र एक निश्चित क्रमके
अनुसार ही प्रस्तुत होता है ।
मद्दाकाव्यकी आधिकारिक कथावस्वुके साथ प्रासंगिक कथावस्ठुका
रहना भी मददाकाव्यकी सफलताके लिए आवश्यक अग है। प्रासंगिक
कथाएँ; मूलकथामे तीतरता उत्पन्न करती हैं |
च्मान काव्यमे अवान्तर कथा रूपमे चन्दनाचवचरित, कामदेवसुरेन्द्र-
रुवाद तथा कामदेव-द्वारा वर्द्धमानकी परीक्षा ऐसी मर्मस्पर्शी अवान्तर
कथाएँ है, जिनसे जीवनके आनन्द और सौन्दर्यका आमास ही नहीं होता
प्रत्युत सौन्दयंका साक्षात्कार होने रगता है ।
जगत् और जीवनके अनेक रूपों और व्यापारॉपर विमुग्ध होकर
कथिने अपनी विभूतिको चमत्कारपूर्ण ढगसे आविर्यूत किया है। भावोकों
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