शरत साहित्य भाग 15 | Sharat Sahitya Bhag 15

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Book Image : शरत साहित्य भाग 15  - Sharat Sahitya Bhag 15

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्छ दारत-साहित्य बातचीत करें और क--'' भाई, हम लोग पूजा तो करते हैं, लेकिन यद तो '. बतलाओं कि किस तरदद करते हैं ? ” तब एसी बहुत-सी बातोंके निकल पढ़नेकी सम्भावना रहती है जिन्हें बाहरके लोगौको सुनानेसे किसी तरह काम नहीं चल सकता ! इसलिए हम लोगोकी यह आलोचना एकान्तमें ही ठीक है । यहद बात सभी देशकि पुरुष समझते हैं कि सतीत्वसे बढ़कर नारीके लिए. और कोई गुण नहीं हो सकता । क्योंकि पुरुषोंके लिए. यद्दी सबसे अधिक उपादेय सामग्री है । और अपने स्वामीकी आशाके बाहर दोकर,--फिर चाहे स्वामी कितना दी बड़ा पाखंडी क्यों न हो,--मन ही मन उसे तुच्छ समझने और उसकी अवहेला करनेसे बढ़कर उनके लिए. और कोई दोष नहीं है । इनमेंसे हर एक बात दूसरी बातकी पूरक और आवश्यक अंग या निकलनेवाला निष्कर्ष ( न एणणेी8क ) है । रामायण, महाभारत और पुराणों आदिमें इस बातकी बार बार आलाचना की गई है कि यह सतीत्व नारीका कितना बढ़ा धर्म है । इस देदमें इस विधयपर इतना अधिक कहा जा चुका है कि अब इस सम्बन्धमें और कुछ कहनेके लिए, बाकी दी नहीं रह गया दे । यहाँ तो स्वये भगवान्‌ तक इस सर्तीत्वकी चपेट आकर अनेक बार अस्थिर हो चुके हैं लकिन ये सोरे तक एक-तरफा ही हैं । केवल नारीके लिए ही हैं । हूँढ़नपर भी इस बातका कहीं कोई पता नहीं चलता कि पुरुषोंकि सम्बन्ध भी यहाँ कोई विशेष बाध्य-बाघकता थी; और अगर हम साफ तौरसे यह बात कहें. कि इतने बड़े प्राचीन देशमें इस विषय पुरुषाके सम्बन्धमं कहीं एक शब्द तक नहीं है. तो डायद हाधा-पाईकी नौबत आ जायगी । नहीं तो यह बात हम साफ तौर पर कह भी डालते । अँगरेज भी कहते हैं कि ” (५459४ (> आचरणकी पवित्रता ? होनी चाहिए; पर वे इसके द्वारा पुरुष और ख््री दोनोंका ही निर्देश करत हैं और हमारे देशमें जिस शब्दका अर्थ ' सतीत्व * होता है, वह केवल नारियोंके लिए, दी है । यह ठीक है कि शास्त्रकार लोग वनों और जंगलीमें निवास करते थे: लेकिन फिर भी वे लोग समाजकों पहचानते थे और इसीलिए, वे लग एक दाब्द बनाकर भी अपने जाति-भाइयें। अर्थात्‌ पुरुफकों श»८०८८४८01ला0८ में ( न्सेकटमें या कठिन परिस्थितिमें ) नहीं डाल गये । वे इस बातके लिए. काफी जगह रख्र गये हैं कि नासीके सम्बन्ध युरुषकी प्रदृत्ति जितना चाहे उतना खुलकर खेल सक । वे कह गये हैं कि पैशाच विवाह भी विवाह है ! पुरुष॑ंकि साथ




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