अध्यात्मिक निवेदन | Adhyatmik Nivedan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे सम्पन्दान, सम्पदान, /.-आत्मस्प स स्ताफा मार्ग हि। सम्प्चारित्रका एफ्यता- /% ५ गात्मस्प 1 ज ५ दे -... आत्मधघम-सम्मलन | के १ हएुणक जीन सुख शाति चाहता हे-यह सर्वथा मत्य है| ९ सुख ये शाति अपने आत्मामि है । २ आत्म सत्तरूप पर विश्वास लाने और उसका ब्यान 'करनेसे वे खय भाप्त होने लगती है | ? आात्मावा लक्षण चेतना ( देखना, जानना ) है | यह चेनना रहित अनीय-पदार्थीसि भिन्न है। टसका सत्म्वरूप अमठमें शुद्ट, आनदमई, अपिनाणी, क्रोधात्कि पिफारोंसे रदित है | यह देह प्रमाण आफार रखता है | घ्र्ये आत्मादी सत्ता सदा मिन्न२ बनी गहली है, इससे यह सित्य है। आत्मामि परिणाम सदा नये९ हुआ फरते है इससे यदद परिणामी भी है । ९ यदपि हम वर्तमानमें खशुद्ध है, स्वरूप निश्यय करके एफातमें बेठशर उपद्धा व्यान सरेरे शाम कमसेस्म १ न्द्श५ चाहिये । जपरी ही. देहमे रह प्रमाण उसे विचारा चाडिये। ६. हरएफ घागमे शि२ आत्मा है डूम कोई भी जपने भर, बच, पर हमें आत्माड़ा शुद्ध 1 मनन, मनन, पूजन, मिपिट अयय करना म्फटियरी मं झे समान 1 सपा ने है कि «फायसे फिसी असारण नस नें कर बी की




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