अध्यात्मिक निवेदन | Adhyatmik Nivedan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
650
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे
सम्पन्दान, सम्पदान, /.-आत्मस्प स स्ताफा मार्ग हि।
सम्प्चारित्रका एफ्यता- /% ५ गात्मस्प
1 ज ५ दे
-... आत्मधघम-सम्मलन | के
१ हएुणक जीन सुख शाति चाहता हे-यह सर्वथा मत्य है|
९ सुख ये शाति अपने आत्मामि है ।
२ आत्म सत्तरूप पर विश्वास लाने और उसका ब्यान
'करनेसे वे खय भाप्त होने लगती है |
? आात्मावा लक्षण चेतना ( देखना, जानना ) है | यह
चेनना रहित अनीय-पदार्थीसि भिन्न है। टसका सत्म्वरूप अमठमें
शुद्ट, आनदमई, अपिनाणी, क्रोधात्कि पिफारोंसे रदित है | यह
देह प्रमाण आफार रखता है | घ्र्ये आत्मादी सत्ता सदा मिन्न२
बनी गहली है, इससे यह सित्य है। आत्मामि परिणाम सदा नये९
हुआ फरते है इससे यदद परिणामी भी है ।
९ यदपि हम वर्तमानमें खशुद्ध है,
स्वरूप निश्यय करके एफातमें बेठशर उपद्धा
व्यान सरेरे शाम कमसेस्म १ न्द्श५
चाहिये । जपरी ही. देहमे रह प्रमाण
उसे विचारा चाडिये।
६. हरएफ घागमे शि२ आत्मा है
डूम कोई भी जपने भर, बच,
पर हमें आत्माड़ा शुद्ध
1 मनन, मनन, पूजन,
मिपिट अयय करना
म्फटियरी मं झे समान
1 सपा ने है कि
«फायसे फिसी असारण नस नें कर
बी की
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