हिंदी नवलेखन | Hindi NavLekhan

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Hindi NavLekhan by रामस्वरूप चतुर्वेदी - Ramswsaroop Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ष हिन्दी नवलेखन गद्यको उसने एक ऐसी सामर्थ्य अवद्य प्रदान की है, जिसके सहारे वह आधुनिक चितनका माध्यम बन सका है । दे हि्दी-नबलेखनकी सादित्यिक पृष्ठभूमिका संदर्भ तब तक अधूरा रहेगा जब तक अंग्रेज़ी तथा यूरोपियन नवलेखनकी रूपरेखा नहीं समझ ली जाती । इस दृष्टिसे अंग्रेशी तथा यूरोपियन “न्यू राइटिंग'का एक संक्षिप्त विवरण प्रमुखत: लेमेनके साकष्यपर यहाँ प्रस्तुत किया जाता है । पश्चिमके देशोंमें नवलेखनका घतिष्ट सम्बन्ध दो महायुद्धोंस है । प्रथम महायुद्धने यूरोपकी मानसिक संबेदनाकों गहराई तक झकझोर दिया था । युद्धननित भौतिक क्षतियाँ तो कुछ समयमें पूर्ण हो जाती हूँ, परत्तु संवेदनास्मक घाव बहुत गहरे होते हैं, और वे जनमानसकों साधारणतः और कलाकारोंको विशेषतः बहुत दिनों तक आन्दोखित करते रहते है। इस दृष्टिसे यूरोपके नये साहित्यका प्रारम्भ लगभग १९३० ई० से होता है, जब प्रथम मेंहायुद्की भौतिक क्षतियाँ बहुत कुछ भरी जा चुकी थीं--- परन्तु आस्थाका विधटन धीरे-धीरे प्रारम्भ हो रहा था । महायुद्ध जन्य सबसे बड़ा खतरा संस्कारहीनता ( डिमों रलाइजेशन ) का बातावरण बरा- बर गहरा होता जाता था । यूरोपियन मस्तिष्कके इसी संघर्षने वहाँके नवलेखनकों जन्म दिया 1 आदर्शोका संघर्ष, जिसमें कैधोलिसिड्म, कम्यूनि्म तथा हमूमैनिड्म जैसे बौद्धिक आन्दोकस सम्बद्ध रहे हैं, प्रथम महायुद्धक वाद ही प्रारम्भ होता है । उन दिनों कम्यूनिश्म लगभग एके घरासलपर फ़ैशन बन चुका था । युद्ककी विभीषिकाने मनुष्यके अध्यात्मकीं नष्ट कर दिया था, और आधिक-सामाजिक कम्यूतिक्म ही मानवं-कल्याणका एकमात्र साधन दिखाई देता था । कम्यूनिज्मकों फ़ैशन कड़ा गया है, क्योंकि छोगोंने अधिकतर उसे एक प्रतिक्रियाके रूपमें अधिक स्वीकार किय! । बहुत कम व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने उसके सिद्धान्ठोंको परख कर तथा उतसे सन्तुष्ट होकर इस नव्य-जीवदं




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