सर्वोदयी जैन तंत्र | Sarvodayi Jain Tantra

Svoredaye Jain Tantra by डॉ. नन्द लाल जैन

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नंदलाल जैन - Nandlal Jain

Add Infomation AboutNandlal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ व्याख्या करने वाला शिरोमणि ग्रन्थ “रत्नकरण्डक श्रावकाचार” के मूलपाठ एव मुनिश्री 108 समता सागर जी द्वारा रचित उसके हिन्दी दोहानुवाद, अन्वयार्थ व भावार्थ प्रकाशन का अवसर प्राप्त हुआ | इस हेतु आचार्य श्री का आशीष एव मुनिश्री की कृपापूर्ण अनुज्ञा मिली | जैन धर्म सम्पूर्णरूप से तीर्थकरों द्वारा प्रणीत वैज्ञानिक व सार्वभौमिक धर्म है | आज के युग की युवा पीढी चहुंमुखी विकास के कारण केवल अन्ध श्रद्धा की कोई बात मानने को तैयार नहीं है। इसलिये मेरे मन में एक मार्गदर्शक, तथ्य व तर्क-पूर्ण वैज्ञानिक विवेचन करने वाली लघु-पुस्तिका प्रकाशित करने का विचार आया ताकि युवावर्ग व जैनेतर मानव समाज भी जैन धर्म व उसकी वैज्ञानिक पद्धति पर अपनी जीवन चर्या पालते हुए सुख, समृद्धि व शान्ति प्राप्त करे | हमारे न्यास के इस विचार को अनेक लोगो से प्रेरणा मिली | इसी क्रम मे “सर्वोदयी जैन तत्र” के रूप मे डॉ० नन्दलाल जी की पुस्तक हमारे सामने आई। हमारे अनेक विद्वान मित्रो ने इसे पढ़ा और पुस्तक प्रकाशन की अनुशसा की | भाई नन्दलाल जी से पिछले 50 वर्षों से हमारा सम्पर्क व स्नेह है और वह न केवल स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी के स्नातक हैं और विज्ञान मे रसायन शास्त्र मे डाक्टरेट प्राप्त हैं । उन्होने देश-विदेश मे-जैन धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नहीं वरन्‌ पूरक है-इस तथ्य को प्रचारित-प्रसारित करने मे महत्वपूर्ण योगदान किया है। जैन धर्म के सभी वर्गों के विद्वानों और साधुओ से उनकी चर्चा व सम्पर्क होता रहता है और वह उनसे ज्ञान व आशीष भी प्राप्त करते हैं | हमे उन्होने इस पुस्तक के प्रकाशन की स्वीकृति दी, इसके लिए हम ' उनके आभारी है। हम ऐलाचार्य नेमी सागर जी महाराज के आशीर्वाद, भाई दशरथजी तथा डॉ० प्रकाश चन्द जी, प० कमल कुमार जी शास्त्री के भी आभारी हैं, जिन्होने इसके लिए मगल कामनाए प्रदान -की हैं। हम विशेषरूप से अपने अनुजवत्‌ मित्र भाई नेमचन्द्र जी “शील” दिल्‍ली के लिए आभार प्रगट करते हैं जिन्होंने अस्वस्थ होते हुए भी इसके प्रकाशन मे सहयोग दिया है। स्वय “शील” जी की कई पुस्तके जीवन में प्रेरणा देने वाली प्रकाशित हो चुकी है और उन्होंने कामना की है कि यह पुस्तक जनों पयोगी होगी । अंत मे, मै अपने ट्रस्ट के सभी साथियों, सहयोगियों की ओर से




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now