प्राचीन पंडित और कवि | Pracheen Pandit Or Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समपमुति रद यतुष अंक के जय मे माधव से उसका समन सकरंद कहना हुन- तदक्तिप्ठं पाराखिस्थसस्सेद्सपरादा नगरोसेय पिन शक: न जिससे चिदित दवा हैं कि पारा चर सिखु नाम दो नदियों के संगम पर पश्शवतीनलगर्ग बसी थी ! इस बात को कवि से नदस अंक के झारम में पुनर्राप खुए किया ई ! चढ़ा उसने लिंग्बा हैं-- फडाचती बिसलदारि दिशालसिन्धु- पारासरित्परिकरच्छुलतों. बिमतिं उत्तबसीधसुरमग्द्रियी पुराट्र सचघझ्पादिनधिसुक्नमिघान्तरिस्‍म संपा चिभाति लचगा सज़ितोस्मिपंकि- रखागमे. जनपदममदय.. थस्याः र्रर्गाधिणी पियनचोपलमालभारि+ सेप्योपकण्ड दिपिना पलेयों . घिमान्ति यहाँ णक लयसाननरों झा मी साम छाया हैं, जले सखुखित होता हैं. कि पश्ायनी के फास ही लगशा मी बहती थी ! इसी अंक में, कुछ दूर शामें, लिखा है - बायश् मघुमती सिन्खुसम्मेद्पादनों सगदान मचानीं- सुलिगेपरिसेयप्रतिएर सुदर्गबिन्दुरिस्यास्पायतें ।”” इससे यह भी जाना जाता है कि चहाँ मघुमती नाम को मो नदी थी और उसके तथा सिंखु के संयस पर स्टुबर्णुचिदु- नकन *




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