व्याकरण ज्योत्स्ना | Byakaran Jyotsana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1. इुर य
. इन स्वरों में कुछ ऐसे स्त्रर होते हैं, जिनके उच्चारण में कम समय छगता
है । इस प्रकार के स्वरों को एक मात्रा वाले स्वर या हृस्व स्वर कहते हैं ।
दूसरे प्रकार के स्वर वे हैं, जिनमें पूर्वोक्त स्वरों के उच्चारण काल की अपेक्षा
मघिक समय लगता है इन्हें दो मात्रा के स्त्रर या दीघ स्वर कहते हैं ।
अ, इ, उ, ऋ--ये चारों हि्दी के हस्त सर हैं। था, ई, ऊ--ये तीनों
क्रमश: अ, इ, ऊ-के दीघचें रूप ( दीघ स्तर ) हैं। हिव्दीं में ऋ का दीघं रूप.
. नहीं होता है ।
ए, ऐ, भो औ--इन चारों स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय
लगता है, अर्थात् अधिक समय लगता है--अतः ये. दीघें. स्व॒र है। हिन्दी में
इनके ह्लस्व रूप नहीं होते हैं ।
अत: हित्दी में अर, इ, उ, ऋू--ये चार ह्लस्व हैं तथा--
आरा, ई, ऊ, ए, ऐ, भो, औओ--ये तात दीघं स्वर हैं।
स्वरों का एक प्छुप्त रूप भी होता है। इन प्लुप्त स्वरों के बोलने म दो.
_ मात्रा वाले दीघं स्वरों से भी अधिक समय ( तीन मात्रा का समय ) लगता.
है। किसी को पुकारने के लिए सम्बोधन आदि में प्छुप्त स्वर का उपयोग होता
है । हिन्दी में प्छुप्त को लिखने के लिए कोई स्वत्त्र लिपि चिन्ह नहीं है। स्वर.
के आगे ऊपर की ओर ३ लिख कर प्छुप्त का उच्चारण प्रकट किया जाता है,
से--हे महेद ३, ओ रंजन ३, आदि ।
हमारी वणंमाला में दूसरे प्रकार के वर्ण वे हैं, जिनका उच्चारण बिना .
किसी दूसरे वर्ण की सहायता के नहीं होता है, जेसे--र, घ, क आदि।
_ व्याकरण में इन्हें व्यंजन कहते हैं। हिन्दी में मुख्यतः पेंतोस व्यंजन कहे जाते.
._ हैं, जो नीचे दिये जा रहे हैं-- '
. क, ख, ग, घ, ड ( कवगं )
. च, छ, ज, कक, न ( चवरग )
' ड,ठ, ड़, ढ़, ण. ( वर्ग ).
त, थ, द, ध, न. ( तवगं )
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