व्याकरण ज्योत्स्ना | Byakaran Jyotsana

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Byakaran Jyotsana by करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1. इुर य . इन स्वरों में कुछ ऐसे स्त्रर होते हैं, जिनके उच्चारण में कम समय छगता है । इस प्रकार के स्वरों को एक मात्रा वाले स्वर या हृस्व स्वर कहते हैं । दूसरे प्रकार के स्वर वे हैं, जिनमें पूर्वोक्त स्वरों के उच्चारण काल की अपेक्षा मघिक समय लगता है इन्हें दो मात्रा के स्त्रर या दीघ स्वर कहते हैं । अ, इ, उ, ऋ--ये चारों हि्दी के हस्त सर हैं। था, ई, ऊ--ये तीनों क्रमश: अ, इ, ऊ-के दीघचें रूप ( दीघ स्तर ) हैं। हिव्दीं में ऋ का दीघं रूप. . नहीं होता है । ए, ऐ, भो औ--इन चारों स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है, अर्थात्‌ अधिक समय लगता है--अतः ये. दीघें. स्व॒र है। हिन्दी में इनके ह्लस्व रूप नहीं होते हैं । अत: हित्दी में अर, इ, उ, ऋू--ये चार ह्लस्व हैं तथा-- आरा, ई, ऊ, ए, ऐ, भो, औओ--ये तात दीघं स्वर हैं। स्वरों का एक प्छुप्त रूप भी होता है। इन प्लुप्त स्वरों के बोलने म दो. _ मात्रा वाले दीघं स्वरों से भी अधिक समय ( तीन मात्रा का समय ) लगता. है। किसी को पुकारने के लिए सम्बोधन आदि में प्छुप्त स्वर का उपयोग होता है । हिन्दी में प्छुप्त को लिखने के लिए कोई स्वत्त्र लिपि चिन्ह नहीं है। स्वर. के आगे ऊपर की ओर ३ लिख कर प्छुप्त का उच्चारण प्रकट किया जाता है, से--हे महेद ३, ओ रंजन ३, आदि । हमारी वणंमाला में दूसरे प्रकार के वर्ण वे हैं, जिनका उच्चारण बिना . किसी दूसरे वर्ण की सहायता के नहीं होता है, जेसे--र, घ, क आदि। _ व्याकरण में इन्हें व्यंजन कहते हैं। हिन्दी में मुख्यतः पेंतोस व्यंजन कहे जाते. ._ हैं, जो नीचे दिये जा रहे हैं-- ' . क, ख, ग, घ, ड ( कवगं ) . च, छ, ज, कक, न ( चवरग ) ' ड,ठ, ड़, ढ़, ण. ( वर्ग ). त, थ, द, ध, न. ( तवगं )




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