यूरोपीय राष्ट्रों का इतिहास खंड - ३ | Europeya Rashtraon Ka Itihas Vol. - Iii
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.49 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२७ चतंसान युग का भारम्म
संमका । १८२७ में लन्दन की संधि के अजुसार यूनान को तुर्की
की रक्षा के अधीन, स्वतंत्र देश मान लिया गया । परन्ठु तुर्की
ने इस सन्धि को अस्वीकार कर दिया और प्रशा और आस्ट्रिया
से भी यूनान की स्वतंत्रता को न भाना। इस पर फ्रांस और
इंगलेश्ड की एक सम्मिलित सेना ने अक्तूचर १८९७ में तुर्की
का जलसेना को नेवेरिनो स्थान पर हरा दिया । अब सुलतान ने
ईसाइयों के विरुद्ध पवित्र धार्मिक युद्ध की घोषणा कर दी और
हाल में रूस के साथ की हुई'एक सन्धि को भी भंग कर दिया ।
इस पर रूस भी मैदान में आ गया । इंगलेंड में अच विलिंगटन
का ड्यक प्रधान मंत्री था । उसने सोचा कि ग्रदि इस समय
इंगलेएड चुप रहेगा तो युद्ध के निणय में उसे कुछ अधिकार न
रहेगा और रूस के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने के कारण यूनान रूस
के अधीन हो जायगा । अतः उसने फिर फ्रांस की सद्दायता से
मोरिया में एक सेना भेजी । इसी समय रूसी सेना ने तुर्की सेना
को हरा कर सन् १८२५ में एड्रियानोपल स्थान पर संधि लिया
ली, जिसके अनुसार तुर्की ने सं्विया, मोल्डेविया, चेलेशिया आदि
अआन्तों में इंसाइ शासक नियत करना स्वीकार कर लिया, जिससे
उसका इन प्रान्तों पर नाम-मात्र का अधिकार रद्द गया । इंगलेड
फ्रांस ओर रूस की संरक्षता में यूनान को पृर्ण स्वतंत्रता दी गयी
तथा उसका सिंहासन सन् १८३३ में च्ेरिया फे राजकुमार
ओटो को दिया गया । ओटो ने तीस बप राग्य किया; परंतु वाद
अपरिय तथा पुत्रहोन था । अतः उसका 'उत्तराधिकारी डनमाफ के
राजा क्रिश्चियन नवें का द्विवीय पघ जाज प्रथम--जों इज
की रानी अलक्जंड्रा का भाई था-वनाया गया ।. सन, १८५७
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