जल चिकित्सा | Jal-chikitsa Part-i

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Jal-chikitsa Part-i by रोखालचंद्र चट्टोपाध्याय - Rokhalchandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ .... जूलफकटिप्केल्ल सन्‌ १८६८. ई० में लुईकुनेके साईको बड़ी कड़ी बीमारी हो गयी । उस समय जो प्राकृतिक चिकित्सा चछ रददी थी वह पूर्णताकों नहीं पहुंची थी इसी लिये कुनेके शाईको इससे लाभ नहीं हुआ। जुईकुने ओर उसके. साईको उसी समय थियोडर हैनकीं 1 60 ते पिधण स्वाभाविक चिकित्साकी बात मालूम हुई । उसके साईने इसी पद्धतिके अनुसार अपनी चिकित्सा करोनेका सडुब्प कियां और कई सप्ताह बाद इस चिकित्सा द्वोरा अपने र्वास्थ्य- की बहुत कुछ उन्नति करके लौट भाया । घीरे-घीरे लुईकुमेको इस स्वाभाविक चिकित्साकी उपकारिताका पूरा पता चल गया और उसकी यह दृढ़ घारणा हो गयी कि यह चिकित्सा स्वास्थ्य सुारके दिये सबसे अच्छी है । इसी बीच छुद्ेकुनेकी अपनी बीमारी भी घीरे-घीरे बढ़ती चली गयी । पेठूक व्याघिका जो बीज उसके शरीरमें छिपा हुआ था चहद अबके पूरी तरह विकसित हो उठा । पहले उसने जो ऐलोपैथी-चिकित्सा करायी थी उसका नतीजा यह हुआ कि और-भौर नयी-नयी व्याधियाँ दिखाई देने लगीं | घीरो-घीरे उसकी दूशा ऐसी बिगड़ गयी कि उसे तकलीफ चर्दाशतसे बाहर मात्दूम _ पड़ने लगी । पिताकी कंन्सर-व्याधघि उसकी पाकस्थलीमें भी हो गयी ओर उसके फफडेका कुछ अंश नष्ट हो गया। सखिरके. .. स्नायुओंमें ऐसा दूद दोता कि उसे घरके बादर लुले स्थानके सिवा कहीं चेन नहीं आता था । उसमें काम करनेकी शक्ति नहीं रद्द गयी सौर रातकों नींद आना हराम हो गया.। उस समयः




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