अच्छी हिंदी | Achchi Hindi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे. भी उसे उपेक्ष्य समकेरये । दुभाग्यवण ऐसे लेखकों की संख्या श्राज-कल हिन्दी में बराबर बढ़ती जा रददी है । प्राय: तीस वर्षों से हर साल हिन्दी साहित्य सम्मेलन के शधिवेशन घूम- घाम से होते हैं । उनमें बढ़े-बढ़े धर पूज्य विद्वान्‌ एकत्र होते हैं । उनसे भी अधिक श्रादरणीय विद्वान उनके सभापति होते हैं । भाषणों में हिन्दी के सभी बसें को उन्नति के उपाय बदलाये जाते हैं । परन्तु भाषा की शुद्धता का कभी कोई प्रश्न हो किसी के सासने नहीं झाता । स्वयं भाषा का स्वरूप विशुद्ध रखने के सम्बन्ध में कभी कोई एक शब्द भी नहीं कहता । दशायद इसकी झावइयकता ही नहीं समझी जाती । और आवश्यकता समझी हो क्यों जाने बी हिन्दी इमारी मातृ-भाषा जो ठद्दरी । उसे हम जिस रूप में लिखेंगे, कहीं रूप शुद्ध दोगा ! न समाचार-पत्र, सासिक-पत्र, पुस्तक सभी कुछ देख जाइए । सब में भाषा की समान रूप से दुदंशा दिखाई देगी । छोटे श्रौर बढ़े सभी तरह के, लेखक मू्ें करते हैं, श्र प्रायः बहुत बड़ी-बढ़ी भूलें करते हैं। हिन्दी में बहुत बड़े श्और प्रतिष्टित माने जानेवाले ऐसे श्रनेक लेखक श्र पत्र हैं, जिनकी पक हो पुस्तक झथवा एक ही अंक में से भाषा-सम्बन्धी सेकड़ों तरह की थूलों के डदाइरख एकत्र किये जा सकते हैं । पर आश्रय है कि बहुत ही कम लोगों का ध्यान उन सूलों को श्रोर जाता है । भाषा-सम्बन्धी भूलें बिलकुल आम बात हो गई हैं । विद्यार्थियों के लिए लिखों जानेवाली पाइ्य-पुस्तकों तक की. माषा बहुत लचर होती है। यहाँ तक की व्याकरण भी, जो शुद्ध भाषा सिखलाने के खिए लिखे जाते दें, भाषा-सम्बन्धी दोषों से रद्दित नहीं होते । जिन क्षेत्रों में हमें सबसे अधिक शुद्ध और परिमार्जित भाषा सिलनी चाहिए, जब उन्हीं क्षेत्रों में हमें मद्दी और गलत भाषा मिलती है, तब बहुत अधिक दुग्ख और निराशा दोती है । मेरे परम प्रिय और मान्य मित्र स्व० पं० राम बन्द, शुक्क भी माषा की यह दुदेशा देखकर बहुत दुष्छी होते थे । हिन्दी शब्द-सागर का सम्पादन करते समय हम लोगों को हिन्दी साहित्य के सभी सुस्य अंगों का सिंहावद्लोकन करना पड़ा था। उस समपर साषा-संम्बन्धी अनेक भूलें और विक्चणताएँ हम लोगों के सामने डाती थीं। एक बार हम ' लोगों का त




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