हिन्दू मुस्लिम मेल | Hindi Muslim Mel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 कै न पर 2 हक 2५ गा हद व | | जे 1० हि है 1 पक पक | दिन 1 पं दर कि शी हे भी |) मद की क्र ही न ही पर है 1 है हि का 1 मं कि ही कक ने . ही लि | (1 न 1 1. की नि 1 [के हि की दर | [ ३६: ११ भाषामेद लिपि की भाषा का सवाल और भी सरल है जबदस्तो उसे जटिल बनाया जात है 1 लिपि तो देखने में जरा अलग मालूम होती है कौर उसमें सरल कठिन का सेद नहीं किया जासकता पर भाषा तो हिंदी उद्‌ू एक ही है 1 दोनों का व्याकरण एक है क्रियाएं एक हैं झधिकांश शब्द एक हैं, कुछ दिनों से संस्कृतवालों ने संस्कृत शब्द बढ़ाने शुरु किये, झरबी फारसीवालों ने अरबी फारली शब्द, बस एक भाष। के दो रूप होगये और इसपर दम लड़ने लगे 1 हम दृधा कहें कि सिहर, इसीपर हमारी मिहरबानी झौर दयालुता का दिवाज्ञा निकज्ञ गया, श्रम और मुहब्बत में ही प्रेम ौर सुद्दव्यत न रही 3 भाषा तो इसलिये हे कि हम बात को समझा सकें, बोजने की सफलता तभी है जब ज्यादा से ज्यादा श्रादमी हमारी बात समझ अगर हमारो भाषा इतनी कठिन है कि दूसरे उसे समभ नहीं पाते तो यह हमारे लिये शर्म और दुर्भाग्य की बात है । जब मैं दिल्ली तरफ जाता हूँ तब व्याख्यान देने में मुझे कुछ शर्म सी मालुम होने लगती हे । क्यों कि मध्यप्रांत निवासी होने क कारण आर जिन्दगो भर संस्कृत्त पढ़ाने के कारण मेरी साषा इतनी सच्छी अर्थात सरल नहीं' है कि वहां के मस- लमान पूरी तरह समझ सकें । इसलिये मैं कोशिश करता हूँ कि मेरे बोलने में ज्यादा संस्कृत शब्द न आने पाव, इंच काम में जितना सफल होता हूँ उतनी ही मुझे खुशी होवी है झंर जितना नहीं हो पाता उतना ही अपने को झमागी ओर चालायक समभता हू । यद समभमें नहीं आता कि लोग इस बात में क्या बहादुरी समकते हैं कि हमारी भाषा कम से कम झादमी समसं 1 ऐसा है तो. पागल की' तरह चिल्लाइये कोई न फिर समकते रहिये कि शाप बड़ परिडत हैं इरएक बोलनेवाले. को यह समभना चहिये कि बोलने का मजा ज्यादा से ज्यादा अ दमियों को समझाने में है पागल ढी तरह बेंसमभी को बातें बकने में नहीं 1 की न




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