बुद्ध हृदय | Buddh Hriday

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Buddh Hriday by स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, (५) पर भी तुम्हें दया नहीं है ? वदद तुम्हारी अर्धाज्ञिनी है आधे अंग को छोड़ कर जाने का तुम्हें कोइ ढक नहीं है । मैंने कहा-मैं जगत के छिये पूरे अंग का उत्सग कर रहा हूं तब आधे अंग का उत्सग हो ही जायगा | मार पापी-यदि ऐसा है तो पत्नी को भी साथ ठेजाओे। मैं-जिस अंग का जिस जगदद जैसा उपयोग हो सकता है उसका उसी तरह उपयोग करना चाहिये । साधना के लिये मेरे पुरुष अंग की ही उपयोगिता है । सेद्ध बुद्ध हने पर-स्यान जमा- लेने पर-मैं पत्नी और पुत्र को भी ढेने आऊंगा । अथवा अगर पत्नी की उपयोगिता घर में ही अधिक होगी तो वहीं रहने दंगा । मार पापी-क्या पत्नी साधना नहीं करसकती ? सिद्धां क्या तुम यह समझते हो कि सारा श्रेय पुरुषों के हाय में है? नारी क्या बिलकुल अबला है । यदि ऐसा है तो तुम जगत की सेबा नहीं कर सकते । में-छठने के लिये ज्ञानियों सरीखी बातें करनेवाले मार पापी; मैं तुझे पहिचानता हूं । तू मुझे साधना से शेकना चाहता. है पर मै तेरी बाते अच्छी तरह जानता हूं। द्‌ नारी का पक्ष क्या ढेगा ब्रिचद्वित का मार्ग मैं जानता हूं । राहुलमाता का त्याग मैं विश्वहित ` के लिंय कर रहा हूं । नारी भी साधना कर सकती है राहुलमाता भी साधना करेगी । मनुष्य निर्माण का कार्य भी साधना है जो कि नारी करती है उसे वही करने देना चाहता हं । जैसे चलने के लिये एक पैर आगे बढ़ाया जाता है दूसरा पैर जमा रता दै-दोनो पैरों को एक साथ नहीं बढ़ाया जाता उसी प्रकार मैं अगि




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