एक धर्मयुद्ध | Ek Dharm Yuddh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivedi
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महादेव हरिभाई देसाई - Mahadev Haribhai Desai
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तैयारी कर रहे हैं । इस पर गांधीजी अहमदाबाद आये । उन्हें पता
म्वला कि किसी ग़लतफ़दमी के कारण कई मिलों के मजदूरों ने
हड़ताल कर दी है । पंचों की चियुक्ति के वाद मजदूरों का यद
काय गांधीजी को अयुचित माछम हुआ । जो कुछ हो चुकां था, उसके
छिए उन्होंने मिलमालिकों के सामने अपना खेद प्रकट किया, और
कही कि मजदूर अपनी ग़लती को दुश्स्त करने के लिए तेयार
हैं । यहाँ यह कह देना करी है कि इस मामले में मिलमालिक
बिलकुल वेकसूर तो नहीं थे; फिर भी गांधीजी ने अपने पक्ष
के कसूर को ही वड़ा माना आर उसे सुधार लेने की तत्परता
दिखाई । लेकिन यात मालिकों के गढे नस उतर सकी । वे
इस दक़ीक़त पर ज़ोर देने लगे कि चूँकि पंच की नियुक्ति के वाद
मज़दूरों ने हड़ताल कर दी दै, इसलिए, पंच-फ़ैसडे की वात अब
ख़त्म हो जाती है । पंच के वंधन से वे अपने को मुक्त ७
समझते हैं, भीर जो. मज़दूर २० प्रतिशत मत्ता लेकर काम
करने को तैयार नहदीं हैं, उन्हें निकाल देने का निश्चय कर चुके
हैं । इस संकट को टालने के लिए गांधीजी ने अथक परिश्रम
किया; लेकिन मिलमालिक मजदूरों की ग़लती पर ही फोर देते रहे,
और खुद जरा भी रस से मस न हुए
इसके बाद से गांधीजी मजदूरों में खूब हिलने-मिछने लगे ।
बे श्री अनसूचावइन, और श्री० शंकरढाल बैंकर के सिवा उम
लोगों से भी मिलने और सलाह-मधविरा करने लगे, जो सिल-
मजदूरों की हालत से वाकिफ़ थे और तनख्वादद दगेरा की
जानकारी रखते थे । उन्होंने चढ़ी चारीकी से नीतचे लिखे सवालों की
छानवीन घुरू की: अहमदाबाद के मजदूरों को कितनी मजदूरी
मिलती है? धम्बई के मजदूरों को क्या मिलता है? मजदूरों की
त्
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