एक धर्मयुद्ध | Ek Dharmayuddha

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Ek Dharmayuddha by महादेव हरिभाई देसाई - Mahadev Haribhai Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ड सकती हि । अतएव गांधीजी ने निश्चय किया. कि वे. भुढसर फेम का बे इस संकट को टालने या यत्त करेंगे । श्र बन ही गाँधीजी ने अहमदाबाद पहुँचकर मजदूरों और मिलएजन्टों फी स्थित्ति और इट्रि को समझना झुरू किया । उन्होंने देखा कि पिछले अगस्त से चुनाई पिभाग के मजदूरों को मनचाहा. ' प्लेग बोनस * मिल रहा था । रस वानस के लाभ से बुनाई विभाग के यहूत से मजदूर, जो साधारण ठजा में प्लेग के कारण अहमदाबाद * छोड़कर चले जाते, अपनी जान को खतरे में डालकर मी मिलों से चिपटे हुए थे । जांच करने से माकम हुआ कि वई मामलों में तो यद ' प्लेग बोनस * मजदूरों को उनकी मजदूरी के अलावा करीब ७० -८० फीसदी क्यादा दिया जाता था । और चूंकि प्टेग दन्द होने पर भी अनाज, कपडे और रोजमर्रा के इस्तेमाल की अन्य चीज़ों के दाम पढ़ले मे दुगने, तिगुने और कहीं-कद्दी चौगुने तक हो गये थ, यह 'चोनस जारी रहा था । उस चानस को एकाएक बढ कर बने के मिलमालियो के निधय से घुनाई विभाग के मजदूरों में काफी खलवली मची थी 1 श्री० अनमृयाव्दन से मिलकर ये. रोज अपना असंतोष उनके सामने प्रकट करने लगे थे । अग् थे “'प्लेग बोनस के लजाय महँगाई का कम से कम ५०४ फ़ोसरी भत्ता चाहते थे 1 गांधीजी ने जहमदावाद पहेचकर सं के खास-खास मिलएजन्टों से चातचीत शुरू मी । मे जोग भी रस प्रश्न को सुलसाने की उन्पुकता प्रकट करने लगे । गांधीजी ने अबतक दस पगडे में सीधा भाग लेने का निदयय नहीं विया था 1 घर हालत दिन-य-दिन ना लुक होती ज्य रही भी 1 सरकार के पास भी सारा मामला पहुंच घुस था, और सा० ११ पे




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