नया हिन्दी साहित्य - एक दृष्टि | Naya Hindi Sahity - Ek Drishti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रूप में हमारे सामने आते हैं । इस व्यापक भावना के कारण
ही प्रेमचन्द की तुलना गोर्की से की गई है । प्रेमचन्द बुद्धि-वादी
थे, किन्तु अतिरंजित भावना ने उन्हें आदशेवादी बनाया था
और उनके बुद्धिबाद के पीछे यह प्रेरणा थी !
प्रेमचंद का एक प्रबल अख्र तीखे छुरे-सा उनका व्यंग है ।
क्रोध से क्ुब्ध जब उनकी कल्पना उमर रूप अरह्ण नहीं करती,
तब वे व्यंग का आश्रय लेते हैं। पंडों के वर्णन में उनका व्यंग
उपददास से भर जाता है. । अमीरी के चोचलों का वणेन वह मीठे
वर कोमल विनोद से करते हैं । आप कहते हैं : “तोंद के बरोर
पंडित कुछ जंचता नहीं । लोग यही समभाते हैं कि इनको तर
माल नहीं मिलते, जभी तो ताँत हो रहे हैं। तॉद्ल आदमी की
शान दी और होती है, चाहे पंडित बने, चाहे सेठ, चाहे
तहसीलदार ही क्यों न बन जाय । ( कायाकल्प )
प्रेसचन्द जीवन के किसी भी अंग का चित्र बड़ी कुशलता
और सुघड़ाई से खींचते थे । यही प्रेमचन्द कलाकार की सबसे
बड़ी विजय थी । क़लम उठाया और नक़्शा खींचना शुरू किया ।
उनके हाथ में ग़ज़ब की सफाई थी । इस चित्राइन में वह तन्मय,
आत्म-विस्पत हो जाते थे। कभी-कभी तो. रंग ज़रूरत
से ज्यादा गाढ़ा दो जाता था। सूरदास को लीजिए; एक
अंघे भिखारी का बणन कर रहे हैं; उसमें इतने तन्प्तय
हुए कि भूल गये, अंधा मिखारी गाड़ी के पीछे मीलों नहीं
दौड़ सकता !
इस महान चित्रशाला में हमें जीवन के सभी चित्र मिलेंगे ।
किन्तु एक चित्र उन्होंने फिर-फिर दुहराया है; जजर भारतीय
सामन्तशाद्दी का दृश्य ; कुण्ठित किसान श्र संकट में पड़ी
ज़सींदारी प्रथा । भारतीय गाँव उनकी रंगभूमि है. और किसान
[ रेड |
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