तत्व - बोध | Tatva - Bodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.67 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)32
ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान
ज्ञान के बाद दूसरा शब्द है-विज्ञान। विवेक करे, हेय और उपादेय का विवेक
करे। कौन-सा काम मेरे लिए हितकर होगा और कौन-सा काम मेरे लिए अहितका
होगा, यह विज्ञान करो। फिर विवेचन और विश्लेषण करो कि कितना जीना है? यह
जीवन छोटा है और भविष्य बहुत लम्बा है। ज्यादा से ज्यादा नब्बे, सौ अथवा एक सौ
पच्चीस वर्ष तक चला जाता है। कोई-कोई व्यक्ति 150 की अवस्था को पार कर ले
है। कितना छोटा जीवन है ?
'एक शक्तिमाता अपने भक्त पुत्रों को बार-बार कहती है कि तुम लोग इस छोटे से
जीवन के लिए ज्यादा कर्म-बध मत करो। तुम्हारा आगे का जीवन बहुत बड़ा है। बढ़े
जीवन के लिए छोटे जीवन मे तुम ऐसा कोई भी काम मत करो, जिससे कर्म का बध
हो। लोग जाते है उनसे मागने के लिए कि कुछ मिल जाए। वह शक्ति कहती है कि पे
चीजे मत मागो। यह बहुत छोटी बात है। बस तुम यही याचना करो कि तुम्हारा अगला
जीवन अच्छा कैसे बने ? पवित्र कैसे बने ? सुखी कैसे बने ?
जिस व्यवित मे यह विवेक आता है, वह प्रत्याख्यान और निवृत्ति की ओर जाता
है। व्यक्ति कर्म का बन्धन तो कर लेता है, किन्तु उसे भोगना बडा कठिन होता है।
प्रत्येक व्यक्ति मे यह विवेक जाग जाए कि कोई ऐसा काम न करूँ जिससे चिकने कर्म
का बध हो।
प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ कर्म बधता है। एक कर्म रूखा होता है और एक कर्म
चिकना। रूखा कर्म सूखी हुई बालू की तरह है। भींत पर बालू डालते ही नीचे गिः
जाएगी। चिकना कर्म चिकनी मिट्टी के गोले की तरह भीत पर चिपक जाएगा। हमर
कर्म चिकना न हो। किसी भी प्रवृत्ति के साथ गहरी मूर्च्छा और आसक्ति न हो,
कि बधन गाढा हो जाए और उसका परिणाम बडा जटिल बन जाए। जिस व्यक् कद
विवेक जाग जाता है, वह कर्म का बधन नहीं करता, प्रत्याख्यान की दिशा में अग्रसर हो जात है
पुनर्जन्म का ज्ञान यानी भावी जन्म का ज्ञान, कर्म बन्ध और कर्म विपार्क की दर
होता है तो यह विवेक जागता है कि मैं मनुष्य बन गया हूँ। विकास की सीमा पर 'ह
गया हूँ। मनुष्य होना विकास का शिखर है। जो मनुष्य के जन्म में किया जा की
वह न देवता के भव मे किया जा सकता है, न नरक योनि और तिर्यड्व योनि मं कक
जा सकता है। मनुष्य जीवन मे ही उत्कृष्ट विकास के शिखर पर पहुंचा जा कि
उसके बाद कम से कम हास न हो। मनुष्य से नीची गति में न जाए, तिर्यव्व में न
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