ज्ञान पहेली | Gyan Pahelia

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Gyan Pahelia by मुकेश नादान

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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37 जिसके पास न पत्ता है न जड़ और न फूल हरदम हरी रहती और बढती रहती दूजो के सिर झूल 38 अन्त कटे तो थोडा होता मध्य कटे तो होता कल प्रथम कटे तो मल हो जाता उसका है जीवन मे जल 39 एक नारी का मैला रग लगी रहे वह पी के सग उजियारे में पी सग रहती अँधेरे मे गायब हो जाती 40 प्रथम कटे तो बनती कड़ी मध्य कटे तो रहती झड़ी जगल मे वह पेदा होती घुन लग जाये मेदा होती 41 एक फल के चौबीस फॉके रग श्वेत और श्याम आगे-पीछे दोनो आते नर-नारी है नाम 42 हठी और गुस्सैल बचपना भरी जवानी रोये देर से आये जल्दी जाये बड़ी देर तक सोये पन्कण री दि




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