| Jain Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Dharm  by प्रवर सुशील मुनि - Pravar Sushil Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि सुशील -Muni Susheel

Add Infomation AboutMuni Susheel

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“जैन धर्म का स्वरूप सच्चा यज्ञ तवों जोड़ जीवों जोइ-ठाणं, जोगा सुया सरीर॑ कारिसंगं । कम्पेह्न संजभ जोग-सनती, होम॑ हुणामि इसिणं पसत्थ ॥। उत्तराध्ययन० १२, गा० हे गौतम ! तप अग्नि है, जीव ज्योति स्थान है। मन, वचन, काय के योग कड़छी हैं, शरीर कारिषांग है, कर्म ईंधन है, संयम योग शान्ति पाठ है। ऐसे ही होम से मैं हवन करता हूँ। ऋषियों ने ऐसे ही होम को प्रशस्त होम कहा है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now