| Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“जैन धर्म का स्वरूप
सच्चा यज्ञ
तवों जोड़ जीवों जोइ-ठाणं, जोगा सुया सरीर॑ कारिसंगं ।
कम्पेह्न संजभ जोग-सनती, होम॑ हुणामि इसिणं पसत्थ ॥।
उत्तराध्ययन० १२, गा०
हे गौतम ! तप अग्नि है, जीव ज्योति स्थान है। मन, वचन,
काय के योग कड़छी हैं, शरीर कारिषांग है, कर्म ईंधन है, संयम
योग शान्ति पाठ है। ऐसे ही होम से मैं हवन करता हूँ। ऋषियों
ने ऐसे ही होम को प्रशस्त होम कहा है।
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