अभिषेकपाठ संग्रह | Avishekpat Sangrha

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Avishekpat Sangrha  by पन्नालाल सोनी -Pannalal Soni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ |] यो देवनन्द्प्रथमाभिधानो, बुद्धधा मददत्या स जिनेन्द्रबुद्धि: । भीपूज्यपादोधज्नि देवताशि-- येत्यूजितं पादयुगं यदीयमू ॥1१०॥ जैनेन्द्रं निजशब्दभोगमतुलं सर्वाथसिद्धि: परा सिद्धान्त निषुणत्वमुद्ध कषितां जैनाभिषेक: स्वकः । छन्द्स्सुदम घयं समाधिशतकरस्वास्थ्यं यदीयं घिदा- माख्यातीदद स पूज्य पादमुनिप. पूज्यो मुनीनां गण: ॥११॥। पहले पद्म में पूज्यपाद के तीन नाम प्रख्यात होने का हेतु बताया है और दूसरे में उन के बनाये हुये जैंनेन्द्र व्याकरण, सर्वाधेसिद्धि, जैनाभिषेक, छन्द:राख, समाधिशतक आदि ग्रन्थों का उल्लेख है । इस पर से कोई शंका ही नहीं रहती कि भगवत्पूज्यपाद का बनाया हुआ कोई अभिषेक- पाठ है या नहीं । इतना हो नहीं, प्रत्युत अभिषेक-पाठ इन्हीं पूज्यपाद का बनाया हुआ है, दूसरे तीसरे आदि कल्पित पूज्यपाद का बनाया हुआ नहीं है, यह भी सिर्णीत होता है। यह शिलालेख शक संबत्‌ १०८५ बि० सं» १९२२० मे उत्कीण किया गया हे । इस से यह भी निश्चित दो जाता है कि विक्रम की बारहवीं शताच्दो में भी इस का अस्तित्व था और उस वक्त तक प्रथम पूज्यपाद का ही माना जाता थी । ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन बस्बई ने इस अभिषेक की एक प्रति कनड़ी लिपि पर से नागरी लिपि में कराकर मंगाई थी | उसी एक प्रति पर से इस का सम्पादन किया गया है । यह प्रति कुछ अ्रशुद्ध भी है और इस में कई स्थलों में पाठ भी छूटा हुआ है। संशोधन के समय पूजासार नाम का श्रन्थ देखने में आया उस में यह पाठ उद्घृत है परन्तु उस से भी अत्यन्त अशुद्ध होने से विशेष सहायता न लो जासकी, परन्तु जुटित पाठों की पूर्तिमात्र की गईं ।




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