दर्शनसार | Darshanasaar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर्यानसार ।॥ श्घु
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नयी
की #च्कक भाप च / रच िनक, १, िक लक, चली की नि #ि... अभय, अल अधिक... औग सिप
तेन पुनः अपि च ख्त्यु ज्ञात्वा मुनेः विनयसेनस्य ।
सिद्धान्त॑ घोषयित्वा स्वयं गत: स्वर्गढोकस्य ॥ ३२ ||
अर्थ--विनयसेन मुनिकी सृत्युके पश्चात् उन्होंने सिद्धान्तोका
उपदेश दिया, और फिर वे स्वयं भी स्वर्गलोकको चढ़े गये । अर्थात्
जिनसेन मुनिके पश्चात् विनयसेन आचार्य हुए और फिर उनके बाद
गुणमद्ध स्वामी हुए ।
आसी कुमारसेणो णंदियडे विणयसेणदिक्खियओ 1
सण्णासमंजणेण य अगहियपु्णाद्क्खओ जादो ३३
आसीत्कुमारसेनो नन्दितटे विनयसेनदीक्षित: ।
संन्यासमज्ननेन च अयृद्दीतपुन्दीक्षी जात: ॥ ३३ ॥
अर्थ--नन्दीतट नगरमें विनयसेन मुनिके द्वारा दीक्षित हुआ
कूमारसेन नामका मुनि था । उसने सन्याससे अष्ट होकर फिरसे दीक्षा
नहीं ली और
परिवज्जिऊण पिच्छं चमरं घित्तूण मोहकालिएण ।
उम्म्ग संकलियं बागडविसएसु सब्बेहु # २४ ॥
परिवज्य पिच्छे चमर॑ गृहीत्वा मोहकलितेन ।
उन्माग: संकलित: बागडविषयेषु सर्वेषु ॥ ३४ ॥
अर्थ--मयुरपिच्छिकों त्यागकर तथा चेंवर (गोके वालाकी पिच्छी)
अहण करके उस भ्रज्ञानीने सारे वागढ़ प्रान्तमें उन्मागका प्रचार किया।
इत्थीणं पुणदिक्खा सुछयलोयस्स वीरचरियत्तं ।
कक्कसकेसग्गहणं छट्ठं च गुणव्वद नाम ॥ रे५ ॥
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