दर्शनसार | Darshanasaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्यानसार ।॥ श्घु | नयी की #च्कक भाप च / रच िनक, १, िक लक, चली की नि #ि... अभय, अल अधिक... औग सिप तेन पुनः अपि च ख्त्यु ज्ञात्वा मुनेः विनयसेनस्य । सिद्धान्त॑ घोषयित्वा स्वयं गत: स्वर्गढोकस्य ॥ ३२ || अर्थ--विनयसेन मुनिकी सृत्युके पश्चात्‌ उन्होंने सिद्धान्तोका उपदेश दिया, और फिर वे स्वयं भी स्वर्गलोकको चढ़े गये । अर्थात्‌ जिनसेन मुनिके पश्चात्‌ विनयसेन आचार्य हुए और फिर उनके बाद गुणमद्ध स्वामी हुए । आसी कुमारसेणो णंदियडे विणयसेणदिक्खियओ 1 सण्णासमंजणेण य अगहियपु्णाद्क्खओ जादो ३३ आसीत्कुमारसेनो नन्दितटे विनयसेनदीक्षित: । संन्यासमज्ननेन च अयृद्दीतपुन्दीक्षी जात: ॥ ३३ ॥ अर्थ--नन्दीतट नगरमें विनयसेन मुनिके द्वारा दीक्षित हुआ कूमारसेन नामका मुनि था । उसने सन्याससे अष्ट होकर फिरसे दीक्षा नहीं ली और परिवज्जिऊण पिच्छं चमरं घित्तूण मोहकालिएण । उम्म्ग संकलियं बागडविसएसु सब्बेहु # २४ ॥ परिवज्य पिच्छे चमर॑ गृहीत्वा मोहकलितेन । उन्माग: संकलित: बागडविषयेषु सर्वेषु ॥ ३४ ॥ अर्थ--मयुरपिच्छिकों त्यागकर तथा चेंवर (गोके वालाकी पिच्छी) अहण करके उस भ्रज्ञानीने सारे वागढ़ प्रान्तमें उन्मागका प्रचार किया। इत्थीणं पुणदिक्खा सुछयलोयस्स वीरचरियत्तं । कक्कसकेसग्गहणं छट्ठं च गुणव्वद नाम ॥ रे५ ॥




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