मध्यकालीन भारत कक्षा 11 | Madhyakalin Bharat Class-11

Madhyakalin Bharat  Class-11 by मिनाक्षी जैन

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4./मध्यकालीन भारत धर्म और जैन धर्म के अनेक सिद्धांत विशेष रूप से अहिंसा और शाकाहारवाद हिंदू धर्म के अभिन्न अंग बन गए। बौदधों की सिद्ध परंपरा ने नाथपंथियों के नए शैव संप्रदाय जिसका शुभारंभ गोरखनाथ ने किया था को भी बहुत प्रभावित किया। ईश्वरवादी या आस्तिक हिंदू धर्म जो आज वैष्णव शैव और शाक्त संप्रदायों के रूप में प्रचलित है इसी काल में अपने इन रूपों में विभाजित हुआ। वैसे तो अवतारवाद पहले से ही प्रचलित था लेकिन अब उसने विशेष प्रधानता प्राप्त कर ली थी। विष्णु शिव शक्ति जिन और बुदूध अपने भिन्न-भिन्न रूपों एवं अवतारों के रूप में पूजे जाने लंगे। इससे नाना प्रकार के मंदिरों की वृद्धि हुई और पुराणों वैष्णव संहिताओं शैव आगमों शाक्त तंत्रों और माहात्त्य ग्रंथों का विकास हुआ। देश के भिन्न-भिन्न राज्यों तथा प्रदेशों में स्थित तीर्थस्थानों को जोड़ने के लिए तीर्थयात्रा-मार्गों का सारे देश में जाल-सा बिछ गया जिससे बढ़ते हुए राज्यों तथा रजवाड़ों के बीच देश की सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा मिला। . अलवार तथा नयनार संतों दूवारा विकसित सशक्त भक्ति आंदोलन तमिल प्रदेश में छठी शताब्दी के आसपास प्रारंभ हुआ और बाद में वह कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के रास्ते उत्तर भारत और बंगाल में फैल गया। इस आंदोलन के महान संतों में अप्पर संबंदर और मणिक्कवसागर शामिल हैं जिनकी रचनाएँ तिरूमुराई में संगृहीत हैं जिसे तमिल वेद कहा जाता है। बारहवीं पुस्तक पेरीय पुराणम्‌ की रचना कवि शेक्किलर ने चोलराज कुलोत्तुंग-प्रथम के कहने पर की थी। 1100 ई. के आसपास श्रीरंगम के सुप्रसिदूध विष्णु मंदिर के प्रधान पुजारी रामानुज ने गूढ़ आध्यात्मिक चिंतन के साथ लोकप्रिय भक्ति का मेल बैठाकर इस आंदोलन को नया बल प्रदान किया। रामानुज को वैष्णवों के श्रीसंप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। दक्षिण में भक्ति संप्रदाय के एक अन्य महान प्रतिपादक माधव 1199-1278 का अविर्भाव हुआ। मीमांसात्सक एवं परिकल्पनात्मक दर्शन भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहा। शंकर दूवारा वेदांत के प्रतिपादन के अतिरिक्त नाथमुनि यमुनाचार्य रामामुज और माधव दूवारा प्रणीत धर्म ग्रंथों एवं भाष्यों की रचना भी इसी काल में हुई। कला एवं साहित्य कला भाषा और साहित्य के क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की गत्यात्मकता दृष्टिगोचर हुई। कलाओं के प्रति भारतीय संवेदनशीलता एलोरा के शैलकृत मंदिर चोल स्थापत्य कला के अद्भुत स्मारकों श्रवणबेलगोला की विशाल जेन प्रतिमा और खजुराहो उड़ीसा मथुरा तथा बनारस के कलापूर्ण एवं भव्य मंदिरों के _ साथ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। संस्कृत और प्राकृत साहित्य खूब फला-फूला और अपभ्रंशों का साहित्य भी पीछे न रहा - ये अपग्रंश भाषाएँ आधुनिक क्षेत्रीय भाषाओं की जननी हैं। इस काल की सृजन-प्रतिभाओं में कवि कंबन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं जिन्होंने तमिल रामायण की रचना की थी। पंप पोन और रन की रचनाओं और महाभारत से कननड़ साहित्य की महान श्रीवृद्धि हुई। इन साहित्यकारों ने जैन तीर्थकरों के. जीवन को अपने काव्य का विषय बनाया। तेलुगू साहित्य के नए युग का समारंभ महाभारत के आदि और सभा पर्वों के नननैया दूवारा किए गए अनुवाद | से हुआ। यह अनुवाद कार्य आगे तिकनना चालू रखा गया जिसने विराट पर्व से अंत तक




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