पूर्व मध्यकालीन भारत | Purv Madhyakalin Bharat

Purv Madhyakalin Bharat by रामसिंह - Ramsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ * सय्यदों की विफलता को देखने के झअनन्तर हम बहलोल की विजयों का वर्णन सुनकर आश्चय-चकित हो जावें; किन्तु यदि हम सथ्यदों की विफलता से बदलेाल को सफलता की तुलना करें, श्लौर बहलाल को एक महान सम्राट समझ ते हम बलबन, अलाउद्दीन आदि सम्राटों के प्रति श्रन्याय करेंगे। प्रत्येक सम्राट का बेन करते समय, उसके सम्सुख कान कोन से प्रश्न समुपस्थित हुए. उनको हल करने. के लिए उसने किस नीति का पालन किया, तथा उसमें उसे कहाँ तक सफलता मिली, इन सब बातें पर विचार किया गया है। सम्भव है पाठक पूछें कि बड़े बड़े दिद्वासों की पुस्तकों के रहते मैंने इस श्रन्थ के लिखने की ध्रूष्टता तथा साहस क्यों किया ।' उनको अँगरेज़ी के सुप्रसिद्ध लेखक , रस्किन के शब्दों में में यों उत्तर दूँगा-- 8 9०0६ 1७ पर्पिटाए 0: (0 स्पापिफृषफ घट एणए0 पाए, उ0. 0 एाएप् ॥ उहा्टष, 9: ५ 9९06पर५९ 1, फट घ्पाप्ण 985 50र्टपिफि (0 599, फ़ापिटी। ८ एकच्टाए€$ ५0 96 फिपट, 200 पर्ज्पि। 0६. प़टीफपिपिप 08पर्िघीं, 80 का 85 16 धिफ्0फ़ा8, 90 006 €156 1185 5810 10; 80 व 85 6 दिए 0फ़5, 00. घाट €[56 080 58फ 1... लि 15 90छार्ते 00 88५ टटिकापप्र धाएत साट|0610घरड] 1.06 पाक, एटघापए ६. 811. टाटा! ( 3८506 है उ.ता1९5)- यानी “एक सच्ची पुस्तक. लेखक के विचारों को प्रकट करने, या उसका सन्देश दूर दूर तक फैलाने के लिए नद्दी लिखी जातो, किन्तु लेखक के विचारों का चिरस्थायी करने . के




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