साहित्य शिक्षा | Saahitya-shiksha

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Saahitya-shiksha by पदुमलाल बक्शी- Padumlal Bakshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिस साहित्यसे हमारी सुददचि न जागे; श्राध्यात्मिक श्रौर मानसिक तृप्ति न थिले, हममें शक्ति और गति न पैदा हो, हमारा सौन्दर्य-प्रेम न जागय्रत्‌ हो,---जो हममें सचा सँकल्प त्रौर कठिनाइयेपर विजय पानेकी सच्ची दढ़ता न उत्पन्न करे; वह आज हमारे लिए बेकार है, वह साहित्य कहानेका अधिकारी नहीं | पुराने ज़मानेमे समाजकी लगाम मज़हबके हाथमे थी ।. मनुष्यकी श्राध्या- त्मिक और नैतिक सम्यताका आधार धार्मिक आदेश था, श्र वह भय या प्रलो- भनसे काम लेता था;---पुण्य-पापके मसले उसके साधन थे | दब, साहित्यने यह काम श्रपने जिम्मे ले लिया श्रौर उसका साधन सौन्दर्य- प्रेम है । वह मनुष्यमें इसी सौन्दर्य-प्रेमके जगाने का यत्न करता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसमें सौन्दर्यकी श्रनुभूति न हो | साहित्यकारमें यह बत्ति जितनी ही जायत्‌ श्रौर सक्रिय होती है, उसकी रचना उतनी ही प्रभावमयी होती है। प्रक़ृतिनिरीक्षण श्रौर श्रपनी अनुसूतिकी तीक्णताकी बदौलत उसके सौन्दर्य- बोघमें इतनी तीव्रता श्रा जाती है कि जो कुछ सुन्दर है, अभद्र है, मनुष्यतासे रहित है, वह उसके लिए, श्रसह्म हो जाता है । उसपर वह शब्दों श्र मावोकी सारी शक्तिसे वार करता है। यों कहिए; कि वह मानवता, दिव्यता श्र भद्वताका बाना बाँघे होता है। जो दलित है, पीड़ित है, वंचित है,--चाहे वह व्यक्ति हो या समूह, उसकी हिमायत श्रौर वकालत करना उसका फ्रज़ें | उसकी शझ्रदालत समाज है, इसी अदालतके सामने वह श्रपना इस्तग्रासा पेश करता है और उसकी न्याय-दृत्ति तथा सौन्दर्य-वृत्तिको जाग्रत्‌ करके अपना यत्न सफल समभता है । पर, साधारण वकीलॉकी बरह साहित्यकार झ्पने मवक्किलकी श्रोरसे उन्वित- तनुचित,--सब तरहके दावे नहीं पेश करता, अतिरंजनासे काम नहदीं लेता, झ्रपनी श्रोरसे बाते' गढ़ता नहीं । वह जानता है कि इन युक्तियोसे वह समाजकी श्रदालतपर झसर नहीं डाल सकता |. उस श्रदालतका हृदय-परिवतन तभी सैभव है जब श्राप सत्यसे तनिक भी विमुख न हों, नहीं तो श्रदालतकी धारणा श्रापकी रसे ख़राब हो जायगी और वह झ्ापके ख़िलाफ़ ,फेसला सुना देगी। वह कहानी लिखता है पर वास्तविकताका ध्यान रखते हुए, मूर्ति बनाता है पर ऐसी कि उसमे सजीवता हो श्र भाव-व्यंजकता भी,--बह मानवप्रकतिका सूदम ट्‌




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