अमूर्त्त चिन्तन | Amurta Chintan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बचुप्रेक्षा बौर भावना ७
प्रत्येक कोशिका में ज्ञान-केन्द्र है । प्रत्येक कोथि का में प्रकान-केन्द्र है,
[विंजली का कारखाना है । हर कोणिका का अपना एक कारखाना है विद्युत्
का, चक्ति का । वे कोगिकाएं अपने ढंग से काम करती हैं । उनको बदलना
है, उनको नया जन्म देना है, उनको नया रास्ता देना है तो कापकों अपनी
भावना को उन तक पहुंचाना होगा ।
जव तक हमारी भावना उन तक नहीं पहुचती तव तक हम नहीं वदल
सकते । उदाहरण लें--एक आदमी अपनी क्रोध की आदत को वदलना चाहता
है । सकल्प करता है--मैं क्रोध नहीं करूगा । वार-वार संकल्प करता है, पर
सफल नहीं होता । संकल्प तो करता है, पर गुस्सा वैसे ही मा जाता है । इससे
तो ऐसा लगता है कि यह प्रयोग साथंक नही है, यह उपाय कारगर नहीं है । मैं
वदलना चाहता हूं फिर भी नहीं बदलता हूं । कितने ही लोग वुरे काम करते
हैं गौर पछताते हैं । फिर सोचते हैँ, फिर ऐसा नट्टी करूंगा । पर ठीक समय
आता है, काम हो जाता है। गुस्सा भी आता है, वासना भी सताती है,
वृत्तियां भी सताती है । सब अपने समय पर सताने लगते हैं । दारावी बराव
को छोड़ने का संकल्प करता है, तम्वाक् का व्यसनी तम्बाकू को छोड़ने का
संकल्प करता है, सोचता है, सेवन नहीं करूंगा, पर समय माता है तो भीतर
में ऐसी प्रवल मांग जागती हैं कि उसका संकल्प घरा का घरा रह जाता है ।
संकल्प मंग हो जाता है । ऐसा क्यों होता है? इसलिए होता है कि हम अपने .
संकल्प को वहां तक पहुंचा नहीं पाते । वाहर ही वाहर मे देखते है । हम
चहुत अम्यासी है वाहरी.वात मे । वाहर को देखते है भौर सारी कल्पना वाहर
ही करते है । पर
परिवर्तन की प्रक्रिया का दूसरा सूत्र है--भावना का प्रयोग, संकल्प-
दक्ति का प्रयोग, अप्रभावित रहने का प्रयोग । यह संतुलन का प्रयोग होता है
तो जीवन मे समता घटित होती है और मादमी सौ कदम आगे बढ जाता है ।
साबक ध्यान के पुर्वे और ध्यान के वाद भावनाओं के गम्यास का
सतत स्मरण करता रहे । उनसे एक दक्ति मिलती है, धीरे-घीरे मन तदनुरूप
परिणत होता है, मिथ्या वारणाओ से मुक्त होकर सत्य की दिंगा में अचुगमत
होता है और एक दिन स्वय को तथानुरूप प्रत्यक्ष अनुभव हो जाता है । भावना
सौर ध्यान के सहयोग से मजिल सुसाव्य हो जाती है । साधक इन दोनो की
अपेक्षा को गौण न समके । सभी धर्मों ने भावना का अवलस्वन लिया है ।
भावनाएं विविघ हो सकती है । जिनसे चिंत की बिधुद्धि होती भर
वे सारी भावनाएं है। आज की भाषा मे -भावना का अर्थ है--ब्रेन
वाशणिंग । इसका अर्थ हूँ है--मस्तिप्क की घुलाई । राजनीति के क्षेत्र में ब्रेन
वार्शिग की प्रक्रिया बहुत प्रचलित है । इसका प्रयोजन हैं, प्रराने विचारों की
घुलाई कर उनके स्थान पर नए विचारों को भर देना । यह वहूत प्रचलित: कर उनके स्थान पर नए विचारों को भर देना ।_ यह वहत प्रचलित
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