सत्य की खोज अनेकान्त के आलोक में | Satya Ki Khoj anekant Ke Alok Man

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Satya Ki Khoj anekant Ke Alok Man by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

Add Infomation AboutYuvacharya Mahapragya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मानवीय एकता श्श्‌ वर्गों के लोग महावीर के शिष्य वने ।/ में भतीत के गर्मगृह से वर्तमान के बातायान में लौठ बाया। मैंने युगधारा का अवगाहन किया तो पाया कि महावीर की अ-मृत आत्मा युग- चेतना की पाण्वेभूमि में आज भी विद्यमान है। उनकी वाणी की प्रतिध्वनि आज भी अनन्त के कण-कण में हो रही है । उनके सिद्दान्त आज भी सर्व व्यापी हैं । महादीर ने सापेक्षवाद से विश्व की व्यवस्था की। उन्होंने कहा, एकता और अनेऊता की धारा एक साथ प्रवाहित है इस सह-अस्तित्व के प्रवाह में 'या तुम या मैं के लिए कोई स्थान नही है तुम्हारे बिना मैं और भेरे बिना तुम नही हो सकते | तुम और में एक साथ ही हो सकते है । सघर्ष वास्तविक नही है । घृणा वास्तबिक नहीं है । वास्तविक है सहयोग, वातरू- विक है समन्वथ--अपने अस्तित्व के साथ दूगरो के अस्तित्व की स्वीकृति, अपने व्यक्तित्व की स्वीकृति ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now