अभय की खोज | Abhay Ki Khoj

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Abhay Ki Khoj by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भय के स्रोत १९ भय के मूल स्रोत नही है । हमे खोजना होगा कि भय के मूल स्नोत क्‍या हैं ? भय के चार मूल स्रोत बतलाए गए हैं--- १ सत्वहीनता । २ भय की मति । ३ भय का सतत चिन्तन । ४ भय के परमाणुओ का उत्तेजित होना । १. सत्वहीनता व्यक्ति मे पराक्रम नही है, वल नही है, शक्ति नही है, सत्त्व नही है। जब शक्ति, पराक्रम और सत्त्व का अभाव होता हैं, तव अका- रण ही भय पंदा होता है। सत्त्व अन्त करण से सबद्ध पराक्रम है । जिस व्यक्ति को अपने अस्तित्व का निरन्तर बोध होता रहता है, जिस व्यक्ति मे अपने अस्तित्व के प्रति ग्लानि या हीनता का भाव नही है, वह चेतना सत्त्व-चितना होती है । अपने अस्तित्व का बोध होते रहना, अस्तित्व मे उभरने वाली विशेषताओं का वोध होते रहना यह सत्त्व- चेतना है। जिसमे इसका अभाव होता हे, वह दूसरों को देखते ही डर जाता है, दूसरो से प्रभावित हो जाता है। प्रभावित होता भी एक प्रकार का भय है । सत्त्व की कमी ही इसका कारण वनती है । स्वयं की दुर्बलता ही इसका कारण बनती है । इस दुनिया मे शक्ति-अशक्ति, दुर्वलता-सवलता का नाटक होता रहता है। शक्तिहीन और दुर्बल व्यक्ति की कोई सहायता नहीं करता। शक्तिशाली की सहायता में अनामभित लोग आ जाते है । एक सस्क्ृत कवि ने लिखा है--“सखा भवत्ति मारुत, 1 जब दावानल सुलगता है, आग सारे जगल को भस्मसात्‌ करती है, तव हवा उसका सहयोग करती है । वायु की सहायता के विना बाग




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