बिहारवासियों के नाम चिट्ठी | Biharvashiyon Ke Naam Chitthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ दमन की नीति अपनायी और लांतिपुर्ण सत्याग्रह्दी छात्रों-युवकों पर लाठी - गोली से प्रहार करना शुरू किया और तब मैंने छात्रों के अनुरोध पर खनके आंदोलन का नैंतृत्व करना स्वीकार किया । उस दिन मेरी लाश निकल जाती बिहार सरकार की दमनात्मक कार्रवाई से सरकार के इस्तीफे को और विधानसभा के विघटन की माँगों को बल मिला भौर तब मैंने भी इन माँगों का समर्थन करने का फैसला किया । फिर तो इन मांगों के पीछे जनता का समर्थन व्यक्त करने के छिए व्यापक पैमाने पर हस्ताक्षर- अभियान हुआ बड़े-बड़े जन-प्रदशन और जन-सभाएं हुई और सारा बिद्वार लगातार तीन दिन ३-४-५ अक्तुबर को बंद रहा। आपको याद होगा ५ जन ७४ का वहू विशाल जन-प्रदशन जिसमें बिहार के कोने- कोने से आये हुए लाखों छोग शामिल हुए थे। राजघानी में इकट्ठा होकर उन्होंने सरकार के इस्तीफे तथा बिहार विधानसभा के विघटन की अपनी माँग दुहरायी भर इस माँग के पक्ष में बिहार के हजारों गाँवों के कम-से-कम पचास लाख लोगों के हस्ताक्षर बिहार के राज्यपाल को समर्पित किये । परंतु सरकार के -कानों पर जूँ नहीं रेंगी। अंत में ४ नवम्बर ७४ को मेरे नेतृत्व में वह ऐतिहासिक कूच पटना में हुआ जिसको रोकने और विफल करने के लिए कन्द्रोय रक्षा पुलिस सी० आर० पो० ने अंघाघुन्ध अश्ुगेस के गोले और लाठियाँ बरसायीं भौरे सैकड़ों लोगों को घायल कर दिया । मैंने भी उनकी लाठी की मार खायी । अगर श्रो नानाजी देशमुख भौर श्री अली हैदर तथा अन्य छोगों ने जिनमें मेरी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए नियुक्त बिहार पुलिस के सिपाही भी थे मुझे बचाने के लिए केन्द्रीय रक्षा पुलिस की लाठी का वार अपने ऊपर झेल नहीं लिया होता तो उसी दिन मेरी ला निकल जाती या मैं बुरी तरह घायल हो जाता । यह सारा हुआ केन्द्रीय सरकार के इशारे पर क्योंकि बिहार की सरकार में खुद ऐसा करने की हिम्मत नहीं थी । ुधियाना कुरुक्षेत्र कलकत्ता बिहार के अलावा अन्य तीन प्रदेशों में भेरे साथ ऐसा ही सलक




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