नागरीप्रचारिणी पत्रिका वर्ष 56 | Nagaripracharini Patrika Varsh 56

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Nagaripracharini Patrika Varsh 56 by कृष्णानंद - Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन इस्तलिखितं दिंदी अंधों की खोज ७ प्रंथ की प्रस्तुत प्रति खंडित तथा जीर्णावस्था में मिली है । बहुत से स्थानों की स्याही उखड़ गई है ौर अक्षर भी ठीक पढ़े नहीं जाते। अतः रचयिता के उपयुक्त वृत्त के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । अंध का लिपि- काल अज्ञात है । काव्य की दृष्टि से रचना सुंदर है । रचना के कुछ उद्धरण दिए जाते हें-- नायक लक्षण । ॥ मोतीदाम छुंद ॥। कद्दी पहिले सुचि सील सुभाई । उदार धनाधि सहे कविराई जुवा सब केलि कलान प्रवीन । तिया यक चाह सदा गुन लीन ॥ ऋतु-वणन ( वर्षा ) बरसे सम जात घरी पलहू न ( सु ? ) वियोग विधा ( तन में ) सरसै । सरसे श्षियान ते नीर प्रवाद कराहि करादि दिये करसे । करसे न बसात कछू बसरी “कवि कान्द” सुजान बिना परसै । पर्स तनसों तन हाय दई घनघोर घमंड घने बरसे ॥ १८ ॥ कुद्रतीदास या कुदरती साहब इनकी दो रचनाएं “रामायण” ( अनुमान से ) और “विश्वकारन””” मिली हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है-- रामायण--यदद खंडित है जिसमें श्रंथ के नाम तक का उल्लेख नहीं । विषय को देखकर ही इसका नाम “रामायण” रखा गया है । इसमें चौपाई श्रौर साखियों में रामचरित वर्णित है । दोहे के लिये साखी शब्द प्रयुक्त हुआ है। कथावस्तु में जहाँ तहाँ परिवतन किया गया है। अनेक कथाएं स्वतंत्र रूप से वर्शित हैं और कितनी दो छोड़ भी दी गई हैं। कथारंभ रचयिता ने झपना पूर्व जन्म का इति- हास देकर किया है, जिसका वर्णन स्वयं भगवान रामचंद्र करते हैं । ग्रंथ में कांडों, 'ध्यायों और सर्गों झादि का उपयोग नहीं हुआ है और कथा भी 'ात्यंत. संक्षेप में लिखी गई है। रचनाकाल श्रौर लिपिकाल अज्ञात हैं । विश्वकारन--यदद मंथ पूर्ण हैं। इसमें जगत्‌ की उत्पत्ति के कारण तथा भस्मासुर की कथा का वर्णन है । रचनाकाल अज्ञात है पर लिपिकाल संवत्‌ १६०८ बि० दिया है । .. भ-दोनों का पता-श्री गुसाई रामस्वरूप दास, कुटी सठियाँव, डा० जहदानागंज रोड, जि० श्राजमगढ़ । ..... .... अर




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