योग की कुछ विभूतियां | Yog ki Kuch Vibhutiya

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Yog ki Kuch Vibhutiya  by प्रसिद्ध नारायण सिंह - Prasidh Narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ७. ) की साफ़ से ठीक समझता है । आप स्वयम्‌ अपनी उपमा पसन्द कर लीजिये अथवा नदीन उपमा हूँढ़ ठीजिये पर इस भावना को .झवघइय अपने सन सें धारण कर छीजिये । इन बातों का स्थूल उपसासओं के द्वारा घारण करना सुश्त्म चातों के घारण करने की अपेक्षा अधिक सरल है । एक श्रकार के विचार की शीक्त उस बल पर अवलस्वित है जिस बच के साथ बद्द चिचार प्रेरित किया गया था; इसके अतिरिक्त वछ का एक और भी मागे है जिसके दारा विचार अपनी शक्तियों का योतन करता है । मारा अभिशाय विचार कीं उस भअव्वत्ति से है जिसके दारा एक विचार अपने दी ' अनुकूल विष्रायों को आकर्षित करता है स्तौर इस प्रकार बछ संयुक्त करता है । एक अकार का विचार वैसे दी विचारों को अपने आाकषेण क्षेत्र से केचछ सआाकर्षित दी नददीं करता किन्तु बिचारों में यदद खासियत है कि एक दूसरे से संयुक्त, सिशित छौर सम्मिलित हुआ करते हैं। किसी समुदाय का विचार क्षेत्र सांघारणत: चद्दी दोता है जो उस जाति की व्यक्तियों के विचारों ,का समवाय झुआ करता दे । मनुष्यों की मांति स्थानों सें खालियतें दोवी हैं; उनके सुदृढ़ और निबेछ सर्स- स्थान होते हैं; उनकी मधान अदुचियां ोती हैं । इस बात को वे. सब लोग जानते दें, जी ऐसे विषयों पर विचार करते हैं; , परन्तु इसके समझाने की चष्टा किये दी बिना छाग इस बात को झुछा दिया करते हैं । परन्तु इस वात को समझ रंखना चाहिये. कि कोई स्थान आप से छाप इस विषय सें-झपनी सत्ता नहीं रखता सौर ये स्तासियते किसी स्थान में छाप से आप अन्त-




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