संस्कृत - साहित्य का इतिहास | Sanskrit-sahitya Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.99 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रइन ३--संस्कृत एक बोलचाल की भाषा थी' चिवेचना कोजिए ।
संस्कृत भाषा पर विचार करते समय यह जानना श्रावइ्यक है कि लोक
व्यवहार में उसका रूप क्या था । वह बोलचाल की भाषा थी श्रथवा नहीं ।'
इस सम्बन्ध में विद्वानों की प्रमुखतः दो घारणाएं. हैं । एक घारणा के श्रवुसार
तो प्राकृत ही 'बोलचाल की भाष। थी, संस्कृत केवल साहित्यिक भाषा था 1
आर दूसरी धारणा के श्रनुसार संस्कृत वोलचाल की भाषा भी रहा है ।'
श्रव हम इन्हीं दोनों घारणाओं में से उचित सत की प्रतिष्ठापना कर उसका
विवेचन करेंगे ।
महर्षि यास्क ने निरुवत नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ का प्रणयन किया जिसमें
कठिन वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति दिखलाई गई । इस से यह प्रमाणित
होता है कि संस्कृत बोलचाल की भाषा थी । वैदिक संस्कृत से भिन्न
साधारण जनता की जो बोली थी उसको यास्क ने स्थान-स्थान पर भाषा
कहां है । उन्होंने वैदिक कुदंत शब्दों की व्युत्पत्ति उन से की है जो
लोक-व्यवहार् में घ्राते थे । उस समय विभिन्न प्रांतों में संस्कृत दाब्दों के जो
रूपान्तर तथा विशिष्ट प्रयोग काम में लाए जाते थे उन सबका उल्लेख यास्क
ने किया है। उदाहरण के लिए 'शवति' क्रियापद का प्रयोग कंबोज देवा (वर्त--
मान पंजाव का परिचमोत्तर प्रांत) जाने के श्रथें में किया जाता था परन्तु इसका
संज्ञापद 'शव' (सुर्दा) का ' प्रयोग श्राय॑ लोग करते थे । पूर्वी प्रांतों में “'दांति'
क्रियापद का प्रयोग काटने के श्र में होता था परन्तु उत्तर के लोगों में इसी से
बने हुए 'दात्र' शब्द का प्रयोग हूँसिया के श्रर्थ में होता था । इससे स्पष्ट है कि
यास्क के समय में (विक्रम से लगभग सात सौ वर्ष पुर्व) संस्कृत बोलचाल की
भाषा थी ।
यास्क के शभ्रतिरिक्त परिणनि ने भी ऐसे श्रनेक नियमों का उल्लेख किया
है जो केवल जीवित भाषा के संबंध में हो सार्थक हो सकते हैं ।
(ई० पू० द्वितीय शताब्दी) ने संस्कृत को लोक-व्यवह्त कहा
है श्र श्रपनें शब्दों के संबंध में उसने बताया है कि वे लोक प्रचलित हैं ।
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