कुलटा | Kulta

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Kulta by राजेंद्र यादव - Rajendra Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुलदां / हर. सीचू में बुलाता । बोला है, छोटा सा'न होगा तो उसक्‌ बी लाएगा । सब लोग नीच है । आज नीचे बिलियड््स का प्रोग्राम था और रणधीर वहीं था । मैंने बीनू से मना कर दिया, “आज बहुत थर्क गया हुँ, सफर की थकानें है।तुजा।'' असल में मेरा दिमाग़ बुरी तरह घौखला उठा था। मुझे रहू-रहकर मिसेज तेजपाल की याद आ रही थी । सचमुच, उन्हें मैं कौँसे यों एकदम भूल गया ? मैं चुपचाप चाय पीता रहा । पत्ता नहीं क्या कहकर बीतूं सीचे चली गई थी । विश्वास नहीं होता कि मैं कुछ साल बाहर रहा हूँ । आज भी मिसेज तेजपाल का चेहरा उभर-उभरवार सामने आ रहा है। उनके नाम के साथ ही मुफ्त याद आता है--लाल नम्दे के चौकोर टुकड़े पर बना गोलियों का फूल' और कलाई में चमड़े का फीता लपेटे अपनी कमर मे ऊची अलसेणियन कुततिया' के पीछे कमान बनी खिचती-सी भागती जाती मिसेज तेजपाल की गुनगुनाती सूति”' बहू रह-रहकर अपने बालों की पी भाटका * बीचू की बात सानने को भी मन नहीं करता और दिल के भीनर यह भी मैं जानता हूँ कि फहीं उसकी बात में वजन है'' मुझे लगा जैसे वही फ्लैट है, बची लोग हैं और वही दिन हैं इस कम्नखत बीमू ने यह प्रलद भी तो उसी तरह का लिया है, सब कुछ उसी तरह का सजा रखा यों तों सारेन्लाकों मे फ्रलैटों की डिजाइनें एक जेसी' हैं; लेकिन पहुली' बार जब मैं मेजर तेजपाल' के फ्लैट में गया था तो कितना फ़क लगा था कि दीवारें, बरामदा, कमरे, एक डिजाइन के होकर भी, सब कुछ वे ही गहीं हैं जो सीचे चाले हमारे फ़्लैद के ।




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