कसाय पहुन्ड-१-१९४४ | Kasaya Pahudam-1-1944
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
574
श्रेणी :
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No Information available about फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू. हैंड 2
हमें जा प्रेसकापी प्राप्त हुई है बह 'मरावतीकी प्रतिके छाधघारसे की गई हे । शाराकी प्रति जैन-
सिद्धान्त भवन आाराके अधिकारम है। 'झोर वह हमें पं० क८ मुजवलिजी शास्त्री अ्यक्ष जैन-
सिद्धान्त भवन आराकी कृपासे प्राप्त हुई हे । संशाघनक समय यह प्रति दम लागाके सामने थी ।
दनके तिरिक्त पीछेस श्री सत्तकंसुघातरड्लिखी दि० जैन विद्यालायकी प्रति भी हमें प्राप्त हा गई थी,
इसलिये संशाघनमें थाड़ा बहुत उसका भी उपयाग हो गया है। तथा न्यायाचार्य पं० महन्द्र-
कुमारजी कुछ शंकास्पद स्थल दिल्लीके घमपुरक नय मन्दिरजीकी प्रतिस भी मिला लाय थ ।
संशोघनकी विशेषताएँ-
(१) इस प्रकार इन उपयुक्त प्रतियांके ब्याघारसे प्रस्तुत भागक सम्पादनका कार्य हुआ
है । ये सब प्रतियां लगभग ३४ ब्पम ही सार भारतमे फेली है इसलिये मूल प्रतिक समान इन
सबका बहुभाग प्रायः शुद्ध है । फिर भी इनमें जा कुछ गड़बड़ हुई है बह बड़ गुटालमे डाल
देती है। बात यह है कि नाइपचकी प्रतिमे कुछ स्थल त्रटिति हू योर उसकी सीधी नकल
सहारनपरकी प्रतिका भा यहां हाल दे । पर उसके वाद सहारनपुरकी प्रतिक आधघारस जा शेप
प्रतियां लिखी गई है उन सबसे व स्थल भर हुए पाय जात है । अमरावती, आरा, सागर आर
दृहलीकीं सभी प्रातियांका यहाँ दाल है बतक हमार सामने मुडविद्री शरीर सहारनपुरकी
प्रतियाक आदशें पाठ उपस्थित नहीं थे तथ तक हम लाग बड़ों असमंजसताका झजुभव घरत
रहे । बच मर हुए पाठ विक्रत आर अशुद्ध होत दुए भो मूलम थे इसलिये उन्हें न छोड़ हों सकने
थे आर असज्जत होनेके कारण न जाइ़ ही सकत थे । अन्तमे हम लागांका सुचुद्ध सूभी ्ीर
तदनुसार सहारनपुर शार सूडविद्रीकी प्रतियांक सिलानका प्रयत्न किया गया आर तब यह पाल
खुली कि यह तो किसी भाईकी करामात हैं ऋषियांक वाक्य नहीं । पाठक इन भरे हुए पाठोक
थाड़ा नमूना द
( कु क न हद “उरी पिगलपज बज उच्छंदवादी या |” (ता०, सप्)
संस दुग्वसुग्व न वि उच्ददवादीया ॥” (विन, आन)
दा कक, निज के रन को हे का 2 २ कि. के एन सम कि कि कि
केक जज िपर डापम कद, बल 'य लक्खग्पं प्यं | | 1०, स८ के
“उपज्जात वियति ये भावा जियमण शिच्छयर्णयस्स ।
सायमविणद्र दब्च दव्बट्रिय लचखणुं एयं ।।” (अर, झा)
दस श्रकार आझार भी बहुतस पाठ ह जा मूर्दाचद्री आर सदारनपुरकी प्रतियांसे बूटित है पर
व दूसरी प्रतियांमे टच्छानुसार भर दिये गये हूं । यह कारामात कच आर किससे की यह पहली
ब्र्भा ता नहीं सुलभ है । सभव हैं भविष्यम इस पर कुछ प्रकाश डाला जा सके ।
नुटित पाठांके हम लागांन तीन भाग कर लिए थे (१) जो त्रुटित पाठ उद्धृत बाक्य हैं
वीर वे अन्य अ्न्थोंस पाय जाते हैं उनकी पूर्ति उन ग्रन्थाके आधारसे कर दी गई है । जेसे
नमूनाक तार पर जा दो च्रुटित पाठ उपर दिय है व सम्मतितक प्रन्थकी गाथाएं हैं । शत: वहाँस
उनकी पूर्ति कर दी गई हैं। (२) जा घटित पाठ प्रायः छाटे थे, ध-७ अक्षरांस ही जिनकी पूर्ति
हा सकती थी उनकी पति भी विपय आर घबला जीके श्ञाघारसे कर दी गइ है । पर जा न्टित
पाठ बहुत बड़ है झांर शब्दांकी दृष्रसि जिनकी पृतिक लिए काई 'न्य ख्रात उपलब्ध नहीं हुआ
(१) देखो मुद्रित प्रति पू० २४९ और उसका टिप्पण नं० २३।
(२) देखो मुद्धित प्रति पृ० २४८ और उसका टिप्पण न० १ ।
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