आकाशवाणी काव्य संगम | Akashwani Kavya Sangam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहीं' **** साँवले उजले हंसों की दुहरी सी पाँत
उड़ चली हो र्यों फड़का पंख ।
कहीं पर.. उजले चंदन से चोती घरती पर जसे...
फूल. पत्तियों की नककाशी की जाती हो इयाम श्रगर से ।
श्रौर कहीं पर...
किसी भाड के भुरमुट से छन कर श्राती.
दूुधिया चांदनी पर पड़ती हो
परछाई ज्यों तने डाल टहनी फ्ुनगी की ।
श्रौर कहीं पर
घूनी रुई के फाहों जसे हत्के फृत्फे,
वरद बिरद से उजलें उजलें
बादल दल के बीच बीच से
भकाँक रहा ज्यों नील गगन हो ।
श्र वहाँ क्या छटा सनोरस ।
जेसे भस्म रमाए शिव का
स्फटिक रजत हिम-सा उज्ज्वल तन
जिसमें काले काले विषघर
सोह रहे हों बन श्राभूषण !
सोह रहे हों रज-रज को ज्यों
एक तत्व बन कर सत् श्रो' तम ।
रूपान्तरकार $
श्री जानकीवल्लभ शास्त्री
जन्म, सन् १६१६, मेंगरा,
विहार । रचनाएँ : काकली (सस्कृत
में) | प्रसिद्ध कवि और दलोचक ।
सस्कत में श्राप *ललित-ललाम नाम
से लिखते है । मुजफ्फरपुर के राम-
दयाल सिद्द कालिज मे प्रा व्यापक |
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